अलमारी
आज फिर ज़ेहन में वो जुमला ताज़ा हो गया जो अक्सर मेरे पिता जी कहा करते थे ' There is an end to everything ." यानी इस दुनिया में हर चीज़ का अंत तय है। लगभग 50 साल पुरानी लोहे की मजबूत अलमारी मेरी नज़रों में तैरने लगी। हज़ारों साल पहले जब घरों में संदूक छोटे पड़ने लगे होंगे तो अलमारियों का ईजाद हुआ होगा। आदमी की बढ़ती ज़रूरतों के साथ अलमारी हर घर का हिस्सा बनने लगी। शादी के दहेज में साईकिल , गोल मेज़ और मजबूत लोहे की अलमारी प्रमुखता से दिखाई देने लगी।
बाज़ार में क़िस्म क़िस्म की अलमारियाँ मौजूद है । अलग अलग डिज़ाइन और रंग बिरंगी अलमारियाँ । कुछ अलमारियों में आईने भी लगे रहते हैं जिनमें झाँक कर अक्सर घर की औरतें अपने रूप को सँवारती रहती हैं। विभिन्न साइज के इन आईनों का क्या कहना ..ख़ूबसूरत फ्रेम्स में जड़े नक़्क़ाशीदार आईने अलमारी की सुंदरता को कई गुना बढ़ा देते हैं । कहने को तो ये सिर्फ आईने होते हैं लेकिन इनके भीतर सुंदरता की अनेक परतें छिपी होती हैं मसलन तबस्सुम की लकीरें , आँखों का काजल , ज़ुल्फ़ों के पेंचों ख़म , रुख़सारों के अक़्स , कमान सी भौहें , बरेली के झुमके , नाक की नथ , सुराही सी गर्दन , जुड़े में बिंधे गुलाब , मुहब्बत भरा दिल , किसी माशूक़ की क़ातिल नज़र , किसी आशिक़ का जिगर ...औऱ न जाने क्या क्या । अलमारियों में जड़े इन आईनों के जलवों का क्या कहना .....
दुल्हन के सुहाग के जोड़े , क़ीमती साड़ियाँ , क़ीमती उपहार अक्सर अलमारियों के विभिन्न खानों में रखे जाते और अलमारी के लॉकर में मकान के काग़ज़ात , ज़ेवर औऱ कुल नकदी। अलमारी के लॉकर के अंदर एक मिनी लॉकर भी होता हैं जिसमें हम कोई तावीज़ , कुछ प्रेम पत्र , कोई प्रेम की निशानी -कोई रुमाल , कोई छल्ला , चंद आँसू चंद आहें , अत्यंत क़ीमती रत्न या फिर किसी शाइर का दीवान।
किसी शाइर का दीवान... जी हाँ , ठीक सुना पढ़ा आपने । कई बरस गुज़र गए , ऐसा ही एक वाक़्या मेरे साथ भी गुज़रा था। पतझड़ की एक शाम , मैं अपने शाइर दोस्त के साथ उसके घर की बॉलकनी में बैठा चाय की चुस्कियाँ ले रहा था। रह रह कर हवा का झोका आता और हर झोके के साथ कुछ पत्तें शाख़ों से टूट कर ज़मीन पर गिर जाते। धरती उन पत्तों को अपनी बाँहों में समेट लेती और पत्तें फिर मुस्कुरा उठते। कविता की एक शाम दबे पाँव मेरी आत्मा पर दस्तक दे रही थी। चाय की आख़री चुस्की के साथ मैंने अपने दोस्त से कहा , " औऱ बरबाद साहिब , कुछ ग़ज़ल - सजल हो जाये। "
" अरे क्यों नहीं , अभी लीजिये , " कह कर शायर दोस्त जब कमरे में रखी लोहे की अलमारी की ओर बढ़ने लगे तो मैंने चुटकी ली , " अरे बरबाद साहिब , शेरवानी छोड़िये , ऐसे ही सुना दीजिये ग़ज़ल , शेरवानी पहन कर ग़ज़ल सुनाने से गर ग़ज़ल , ग़ज़ल बन जाती तो हर कोई शेरवानी पहन कर शाइर बन जाता। "
- " अरे नहीं असर साहिब , मैं अलमारी से शेरवानी नहीं बल्कि अपना क़ीमती दीवान निकाल रहा हूँ। "
दोस्त ने अपनी बंडी में हाथ डाल कर एक चाबी निकाली ओर दीवार से सटी लोहे की अलमारी की ओर बढ़ गए। उन्होंने अलमारी को खोला ओर फिर उसका लॉकर खोला ओर फिर मिनी लॉकर खोला औऱ उसमे से अपनी ग़ज़लों की डायरी निकाली।
" अरे , आप ग़ज़लों की डायरी को लॉकर में रखते हैँ "? मैंने हैरानी से पूछा था।
- " अरे असर साहिब हमारे लिए हमारी ग़ज़लें किसी हीरे जवाहरात से कम , बहुत क़ीमती खज़ाना हैं ये मेरा , अगर किस ने लूट लिया तो मैं बर्बाद हो जाऊँगा। "
- " अरे बर्बाद तो आप पहले से ही हैं। " मैंने बर्बाद देहलवी से चुटकी ली। कुछ ठहाके औऱ उसके बाद ग़ज़लों ने माहौल को ख़ुशनुमा बना दिया था। चंद ग़ज़लें सुनाने के बाद उन्होंने तत्काल अपनी डायरी दोबारा लॉकर में रख दी थी और अलमारी फिर से भारी हो गयी थी।
लोहे के मोटे गैज़ की अलमारियों जितना वज़न होता हैं उससे अधिक वज़न उन दुर्लभ औऱ क़ीमती चीज़ों का होता हैं जो अलमारियों में सहेज कर रखी जाती हैं। इन मोटे गैज़ की अलमारियों को जबरन खोलना इतना आसान नहीं होता और इनका लॉकर को जबरन खोलना तो लगभग नामुमकिन होता हैं। अलमारी को तोड़ने का ऐसा ही एक वाक़या ज़ेहन में ताज़ा हो गया।
गर्मियों के दिन थे औऱ मैं छत पर चाँद को निहारते हुए कविताएँ लिख रहा था। अपने चाँद से महबूब के सपने लेते लेते कब आँख लग गयी मालूम ही नहीं पड़ा। भोर के चार बजे होंगे तो घर में शोर सुनाई पड़ा। घर में चार चोर घुस आये थे। घर के मर्द उन्हें पकड़ने दौड़े तो बड़ी अम्मा ने रोक दिया। चोरो को क्या भरोसा एक मिनट में छुरी चला देंगे। घर की सारी बत्तियां जलाई तो पाया कि स्टोर रूम से लोहे के संदूक ग़ायब है। संदूकों में भरे कपडे लत्तों का तो नुक्सान हुआ लेकिन अलमारी में रखा क़ीमती सामान बच गया था। अलमारी को तोड़ने की कोशिश करी गयी थी लेकिन नाकाम रहे थे। तब अलमारी की महत्ता औऱ साफ़ हो गयी थी। छोटे मोटे संदूक को कोई भी उठा कर भाग सकता है लेकिन लोहे की अलमारी को अपनी पीठ पर लाद कर भागना तो दूर कुछ क़दम चलना भी मुश्किल होगा । इसलिए हमेशा मोटे से मोटे गैज़ की अलमारी ख़रीदे औऱ उसके लॉकर में क़ीमती सामान रख कर उसे अधिक भारी बनाते रहें।
वक़्त के साथ साथ मेरी उम्र बढ़ती गयी औऱ मेरी अलमारी की भी। जी हाँ , अब ये अलमारी मेरी हो गयी थी क्योंकि मेरी माँ ने अपने लिए एक Godrej कम्पनी की उससे भी मजबूत अलमारी ख़रीद ली थी और उन्होंने वो लोहे की अलमारी मुझे उपहार में दे दी थी। इस अलमारी की ताक़त तो पहले जैसी बरक़रार थी लेकिन वक़्त के थपेड़ों ने उसकी सुंदरता पर दाग़ तो लगा ही दिए थे। एक बार मकान बदलते वक़्त कुछ मज़दूरों ने मेरी अलमारी को लापरवाही से ज़ीने की सीढ़ियों से लुढ़का दिया था जिससे उसके बदन पर कई चोटें लगी थी। ये तो शुक्र था कि ज़ख़्म मामूली थे औऱ कुछ दिनों में भर गए थे। जब मेरा तबादला दिल्ली से बैंगलोर हो गया तो मैं अपनी प्रिय अलमारी को भी अपने साथ बैंगलोर ले आया। ट्रांसपोर्ट के दौरान अलमारी का आईना टूट गया था जो मैंने फिर कभी नहीं लगवाया।
बैंगलोर की आबो हवा दिल्ली से अलग थी। यहाँ की भाषा औऱ लोग भी अलग थे। मेरी लोहे की अलमारी कुछ वक़्त तक सकुचाई - शरमाई सी रही लेकिन धीरे धीरे उसने कमरे के एक कोने में अपनी जगह बना ली। अब मैं अपनी अलमारी में सिर्फ़ किताबें रखता। किताबें कितनी क़ीमती होती हैं यह तो नहीं कह सकता लेकिन लोहे की उस अलमारी का वज़न अब पहले से भी अधिक भारी हो गया था। अब लॉकर में ज़ेवर तो नहीं लेकिन कुछ गुज़री यादों की तस्वीरें ज़रूर थी। हो सकता हैं फ़ारसी की मशहूर कहावत " आदमी का दाना पानी औऱ उसकी मौत उसको खींच कर ले जाती हैं " आपने न सुनी हो लेकिन एक काली रात मेरा दाना पानी बैंगलोर से उठ गया। मैंने आनन् फानन में अपना कुछ ज़रूरी सामान एकत्रित किया और अगली सुबह बैंगलोर छोड़ दिया। जल्दबाज़ी में अलमारी और किताबों को मैंने वही अपने अपार्टमेंट के बेसमेंट में छोड़ दिया। मैंने अपार्टमेंट के President को ऑफर दिया कि वे उस अलमारी और पुस्तकों से अपार्टमेंट में एक पुस्तकालय खोल ले। लगभग एक हफ्ते के बाद अपार्टमेंट के प्रेजिडेंट ने मुझे फोन करके बताया कि अलमारी के पैरों में ज़ंग लग गया है और अपार्टमेंट की पुस्तकालय खोलने में कोई रूचि नहीं हैं। यह जान कर मैं कुछ उदास हो गया और मैंने प्रेजिडेंट को फोन पर ही इत्तला दी कि मैं एक हफ्ते में अलमारी दूसरी जगह रखने का इंतिज़ाम करता हूँ। दो दिन बाद ही मैंने अपने एक मित्र को अपार्टमेंट में रखी अलमारी देखने के लिए भेजा। मित्र ने जब अपार्टमेंट में पहुँच कर सिक्योरिटी गार्ड से अलमारी के बाबत पूछा तो मालूम पड़ा कि उसने वो अलमारी कबाड़ी वाले को 2000/ रूपये में बेच दी हैं। सिक्योरिटी गार्ड ने यह भी बताया कि प्रेजिडेंट साहिब ने अलमारी उसे गिफ्ट कर दी थी जिसे उसने बेच डाला।
मुझे ये जान कर बहुत आश्चर्य हुआ कि मेरी लोहे की अलमारी को अपार्टमेंट के प्रेजिडेंट साहिब ने बिना मेरी अनुमति के कैसे किसी दूसरे को गिफ्ट कर दी। अपनी बरसो पुरानी लोहे की अलमारी से बिछड़ने का दुःख तो था लेकिन इस बात की ख़ुशी भी थी कि अपार्टमेंट के प्रेजिडेंट साहिब का कितना स्नेह और प्रेम मुझ पर रहा होगा जो उन्होंने अधिकार से मेरी अलमारी को गिफ्ट कर दिया था।
मुझे इस बात की भी ख़ुशी थी कि सिक्योरिटी गार्ड ने वो 2000/ रूपये अपनी बीमार माँ के इलाज में खर्च कर दिए थे बस दुःख था तो इतना कि मेरी पुश्तैनी लोहे की अलमारी कल किसी लोहा भट्टी में जल रही होगी। मैं बंद आँखों से उस लोहे की अलमारी को किसी भट्टी में गलता देख रहा था और मेरी आँखें कुछ पलों के लिए नम हो गयी थीं ।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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