मैं और मेरे रबीन्द्रनाथ - सुहिना बिश्वास मजूमदार
कौन बनाता है रबीन्द्रनाथ , रहस्य या मिथक ,
सूफ़ी ?
कौन बनाता है रबीन्द्रनाथ
माँ सरस्वती की कृपा या
उनकी अपनी समृद्ध विरासत ,
बपौती , शासक की ज़िम्मेदारी
या
प्रोमेथियस की आत्मा ?
परदे के पीछे , आकाश के नीचे
क्षितिज के उस पार
मैं समझना चाहती हूँ
इस संसार की फुसफुसाहट को ,
भीड़ के संत्रास के दुःख को
खिलती हुई ख़ुश्बू को
काश मैं महसूस कर पाती
काश मैं सीख पाती
काश मैं बिजली की क्रूरता से
प्रेम करती और भूल जाती
भेष बदले दुश्मन के रहस्य को या
इस अँधेरे संसार को युद्ध की ओर
धकेलते किसी धन जुटाने वाले को
किसी जादूगर की मानिंद
मैं बढ़ सकती हूँ प्रेम करती हुई आगे
आज ओर कल की अधूरी कहानियों को
पीछे छोड़ते हुए
अपने चमकीले सपनों में , मैं जुड़ सकती हूँ
ज़िंदगी के बाहरी बहाव के साथ
इंसानी अस्तित्व की जीत का
कर सकती हूँ अनुभव उनके साथ।
कवियत्री - सुहिना बिश्वास मजूमदार
अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस
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