Friday, August 16, 2024

अजनबी दोस्त

अजनबी दोस्त 


 अभी मैं उस से मिला नहीं हूँ 

 न सुनी है उसकी आवाज़ 


 दिल है कि उठता ही जाता है 

तस्सवुर में उभरती  

एक धुंदली सी तस्वीर 

वो लम्बे क़द वाला 

मेरा मेहबूब कैसा होगा 

बादलों में छिपे चाँद के जैसा होगा 

उसकी भँवे   कमान सी होंगी 

आँखें उसकी बादाम सी होंगी 

सुर्ख रुख़्सार  गुलाबी होंगे

उसके   नैन  शराबी  होंगे

लब  उसके पैमाने होंगे 

जिनके सब दीवाने होंगे  

 ज़बान यक़ीनन  शीरीं होगी 

 आसमानी कोई परी होगी  

अभी मैं उस से मिला नहीं हूँ 

न सुनी है उस की आवाज़ 


किरणें जब उसको छूती होंगी 

ख़ुद पे वो इतराती होगी 

भीगी उसकी ज़ुल्फ़ें  काली  

बदरी भी शरमाती होगी 

उसकी बाहों के घेरे में

कौन नहीं घिर जाता होगा 

उसके बदन का संदल 

किसको नहीं सुहाता होगा 

उस   उद्दाम  नदी से मिलने 

समुन्दर भी अकुलाता होगा 

उसकी  पलकों को छू कर 

सूरज भी मुस्काता होगा 


वो  जिस्म रहता है जिस रूह में 

वो रूह भी रूहानी होगी 

कई सदियों की कहानी होगी 


अभी मैं उस से मिला नहीं हूँ 

न सुनी है उस की आवाज़ 


वो झिलमिल तारा अजनबी 

क्या  दोस्त था मेरा कभी ?


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 




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