Tuesday, August 20, 2024

फ़्लैश बैक - गुल्ली डंडा

 गुल्ली डंडा 


गुल्ली डंडा था 

मेरा प्रिय खेल 

और मेरा सहपाठी 

रामगोपाल 

फुटबॉल की तरह मुँह

पकोड़े सी नाक 

नाटा क़द 

लेकिन इस खेल का उस्ताद ,

दिखने में लगता था वो बन्दर 

पर बनाता था 

चित्र अति सुन्दर ,

पुरानी दिल्ली के 

रामलीला ग्राउंड में 

कितनी ही बार खेला ये खेल ,

उस ज़माने में यही था 

ग़रीबों का खेल ,

लेकिन मैं

उतना ग़रीब भी नहीं था 

खेल सकता था 

दुसरे खेल भी लेकिन 

आता था बहुत लुत्फ़ 

खेलने में गुल्ली डंडा 

मुझे याद नहीं पड़ता 

जो मैं जीता हूँ कभी उसे से 

हमेशा , हमेशा पिदाता ही 

रहा वो मुझको।  


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


 


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