राजा मात्याश के काल में एक महान दुर्जेय चेख योद्धा रहता था। वह इस बात के लिए मशहूर था कि उसे कोई हरा नहीं सकता था. अन्त में देश में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं बचा जो उससे लड़ने का साहस कर सके। राजा मात्याश ने घोषणा की कि जो कोई भी चेख योद्धा के खिलाफ खड़े होने का साहस करेगा उसे आवेदन करना चाहिए। राजा ने विजेता को बड़ा इनाम देने का वादा किया, लेकिन किसी ने भी निमंत्रण का जवाब नहीं दिया। राजा को क्या करना चाहिए? राजा अब बुदा के विशाल महल में उस चेख योद्धा को फलते - फूलते हुए देखना सहन नहीं कर सकता था। राजा ने सोचा कि उस चेख चैंपियन के खिलाफ वह स्वयं खड़ा होगा। बेशक भेष बदल कर ! समस्या यह थी कि द्वंद्व केवल तभी वैध था जब राजा भी उपस्थित हो। मात्याश ने किसी तरह से यह ऐलान करा दिया कि राजा कि अनुपस्थिति में भी लड़ाई जारी रख सकते हैं। जब युद्ध का दिन आया, तो राजा मात्याश ने कवच पहन लिया। उन्होंने अपने सिर पर बख्तरबंद हेलमेट और हाथों में बख्तरबंद दस्ताने पहने और मैदान में उतर गए । लड़ाई शुरू हो गई . भीमकाय चेख ने शेर की तरह दहाड़ते हुए अपने प्रतिद्वंद्वी पर बेतहाशा हमला किया, लेकिन मात्याश ने हार नहीं मानी। भीड़ ने अज्ञात हंगेरियन बहादुर को उत्साहपूर्वक प्रोत्साहित किया: - मारो, काटो! तुम्हारे पिता नहीं! चलो, हंगेरियन! बढ़ों , हंगेरियन! - वे चिल्लाए, जिससे पूरा बुदा महल गूंज उठा। अंत में,मात्याश ने चेख बहादुर को ह लोगों और सरदारों ने मांग करी कि वह अपना हेलमेट उतारकर अपना चेहरा दिखाए! मात्याश ने अपने बख्तरबंद हेलमेट की ग्रिल खोली, उन्हें देख कर हर कोई दंग रह गया। लोग खुशी से झूम उठे: - राजा मात्याश अमर रहें! - ज़िंदाबाद।। ज़िंदाबाद ! के नारों से बुदा क़िले की दीवारें गूँज उठीं।
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