Wednesday, August 7, 2024

फ़्लैश बैक - दादा जी

 दादा जी 


अपने दोनों हाथों में 

सब्ज़ी के भरे हुए थैले 

उठाए  हुए 

मीलों तक पैदल चलना 

ज़रा भी संकोच हुआ नहीं कभी 

मेरे विद्वान दादा जी को ,

मेहनत से कभी नहीं चुराया जी 

घर के बहुत से काम 

मसलन , गेहूँ धो कर सुखाना 

चारपाई को बान से बुनना   

निवाद का पलंग बुनना 

गोल मेज़ पर संस्कृत - अँग्रेज़ी के 

कोश पर कार्य करना 

किसी विद्यार्थी को संस्कृत पढ़ाना 

घर आए

अतिथियों का स्वागत  करना 

रोज़ वैदिक संध्या करना 

प्रातः काल संस्कृत श्लोकों का 

उच्चारण करना 

त्योहारों पर वैदिक हवन करना 

पुरोहित बन कितने ही जोड़ों का 

पाणिग्रहण संस्कार करवाना ,

रात में अक्सर 

उनकी पीठ और तलुओं को 

कंघे से खुजाता बड़े मन से 

लेकिन संस्कृत के पाठ 

दोहराता बे-मन  से  

शायद इसीलिए 

नहीं सीख पाया संस्कृत ,

आज सोचता हूँ एकांत में 

कितना मुश्किल होता है 

दादा जी होना। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


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