Monday, August 26, 2024

Dil Dilli Dariya

 दिल्ली में आज भीक भी मिलती नहीं उन्हें 

था कल तलक दिमाग़ जिन्हें ताज-ओ-तख़्त का 


- मीर तक़ी मीर


दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है 

जो भी गुज़रा है उस ने लूटा है 


बशीर बद्र


चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है 

जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है 


मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद


दिल्ली कहाँ गईं तिरे कूचों की रौनक़ें 

गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं 


जाँ निसार अख़्तर


अमीर-ज़ादों से दिल्ली के मिल न ता-मक़्दूर 

कि हम फ़क़ीर हुए हैं इन्हीं की दौलत से 

-मीर तक़ी मीर


ऐ वाए इंक़लाब ज़माने के जौर से 

दिल्ली 'ज़फ़र' के हाथ से पल में निकल गई 


बहादुर शाह ज़फ़र


इन दिनों गरचे दकन में है बड़ी क़द्र-ए-सुख़न 

कौन जाए 'ज़ौक़' पर दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर 


शेख़ इब्राहीम ज़ौक़


जनाब-ए-'कैफ़' ये दिल्ली है 'मीर' ओ 'ग़ालिब' की 

यहाँ किसी की तरफ़-दारियाँ नहीं चलतीं 


कैफ़ भोपाली


दिल्ली छुटी थी पहले अब लखनऊ भी छोड़ें 

दो शहर थे ये अपने दोनों तबाह निकले 

मिर्ज़ा हादी रुस्वा


दिल्ली के न थे कूचे औराक़-ए-मुसव्वर थे 

जो शक्ल नज़र आई तस्वीर नज़र आई 

मीर तक़ी मीर


दिल्ली में अपना था जो कुछ अस्बाब रह गया 

इक दिल को ले के आए हैं उस सरज़मीं से हम 

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी


ऐ सबा मैं भी था आशुफ़्ता-सरों में यकता 

पूछना दिल्ली की गलियों से मिरा नाम कभी 

हसन नईम


क्यूँ मता-ए-दिल के लुट जाने का कोई ग़म करे 

शहर-ए-दिल्ली में तो ऐसे वाक़िए होते रहे 

ज़ुबैर रिज़वी



तज़्किरा देहली-ए-मरहूम का ऐ दोस्त न छेड़ 

न सुना जाएगा हम से ये फ़साना हरगिज़ 

अल्ताफ़ हुसैन हाली



दिल्ली हुई है वीराँ सूने खंडर पड़े हैं 

वीरान हैं मोहल्ले सुनसान घर पड़े हैं 

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी


मरसिए दिल के कई कह के दिए लोगों को 

शहर-ए-दिल्ली में है सब पास निशानी उस की 

मीर तक़ी मीर


दिल-रुबा तुझ सा जो दिल लेने में अय्यारी करे 

फिर कोई दिल्ली में क्या दिल की ख़बरदारी करे 

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी


लैला घर में सिलाई करने लगी 
क़ैस दिल्ली में काम करने लगा 
-फ़हमी बदायूनी

अर्ज़-ए-दकन में जान तो दिल्ली में दिल बनी 
और शहर-ए-लखनऊ में हिना बन गई ग़ज़ल 

गणेश बिहारी तर्ज़







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