वैद्य जी
चौरासी घंटे मंदिर के सामने
आयुर्वेदिक दवाख़ाना
और वैद्य जी कैलाश चंद
आज भी स्मृति में ताज़ा है
गोरा रंग , लम्बा क़द
नेहरू टोपी , कुरता और धोती
विनम्र और मृदुभाषी ,
अक्सर जाता था उनके पास
पेट के दर्द का बहाना बना
लिखते थे पर्चे पे
अजीब - सी लिखावट
जिसे पढ़ पाता था
बस उनका कम्पाउण्डर
जो तभी बनाता था चूरन ताज़ा
जिसको चाटने में
मुझे आता था बहुत मज़ा
चूरन की पुड़िया अपनी जेब में रख
मैं ख़ुशी - ख़ुशी लौट जाता था घर।
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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