गाजर की काँजी
सर्दियों में बनाती थी मेरी नानी
गाजर की काँजी
शीशे के मर्तबान में ,
उस पारदर्शी मर्तबान में
काँजी का लाल रंग
दिल को बहुत लुभाता
छत पर सर्दियों की धुप में बैठ
काँजी पीने का लुत्फ़ उठाता
जीवन में बहुत से पेय पदार्थ पिए
लेकिन उस काँजी का स्वाद
ज़बान पर आज भी है ताज़ा .
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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