हँसी है दिल-लगी है क़हक़हे हैं
तुम्हारी अंजुमन का पूछना क्या
इक मिरा सर कि क़दम-बोसी की हसरत इस को
इक तिरी ज़ुल्फ़ कि क़दमों से लगी रहती है
- मुबारक अज़ीमाबादी
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कल वस्ल में भी नींद न आई तमाम शब
एक एक बात पर थी लड़ाई तमाम शब
ख़्वाब में बोसा लिया था रात ब-लब-ए-नाज़की
सुब्ह दम देखा तो उस के होंठ पे बुतख़ाला था
- ममनून निज़ामुद्दीन
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