Friday, June 27, 2025

शहर और जंगल - अनकहे शब्द

 अनकहे शब्द 


कुछ अनकहे शब्द 

जब बन जाते हैं महाकाव्य 

तब क्या अर्थ रह जाता है 

उन अंतहीन शब्दों का 

जिनका अर्थ तलाशने में 

कई बार 

टूटता , बिखरता है आदमी 

सहता है सब कुछ 

और 

कह नहीं पाटा कुछ भी 

ठीक उस नदी की मानिंद 

जो उम्र के हर मौसम में 

अपना रास्ता 

स्वयं तय करती है 

और अनजानी 

मंज़िलों की  तलाश में 

भटकती रहती है 

सदियों तक 

ठीक अनकहे शब्दों की तरह। 

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