Saturday, June 14, 2025

लघुकथा - बछिया का लड्डू

 बछिया का लड्डू 


चौधरी साहिब की गाय ने बछिया को जन्म दिया तो चौधरी  साहिब ख़ुशी से फूले न समाये।  पूरे गाँव में लड्डू बाँटे जा रहे थे  । नुक्कड़ पर चंद लोग फुसफुसा  रहे थे।  

- ' कमाल है यार , अभी पिछले महीने जब चौधरी साहिब की बहु ने लड़की को जन्म दिया था , तब तो चौधरी साहिब का मुँह लटक गया था और अब बछिया के जन्म पर लड्डू  बाँट रहे हैं। ' गोबर ने पूछा था।   

- ' अरे इतना भी नहीं समझते क्या , बछिया बड़ी होकर दूध देगी जबकि लड़की को पढ़ाओ , लिखाओ , खिलाओ , पिलाओ और एक दिन बड़े दहेज के साथ किसी बैल के घर बाँध आओ। यानी नुक्सान ही नुक्सान। ' बुजुर्ग ने समझाया। 

-' सही कह रहे हो भाई , कलयुग है और इस कलयुग में इंसानों की औकात जानवरों से भी कम है। ' कहते हुए गोबर ने चौधरी साहिब के लड्डू से अपना मुँह भर लिया। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

No comments:

Post a Comment