बछिया का लड्डू
चौधरी साहिब की गाय ने बछिया को जन्म दिया तो चौधरी साहिब ख़ुशी से फूले न समाये। पूरे गाँव में लड्डू बाँटे जा रहे थे । नुक्कड़ पर चंद लोग फुसफुसा रहे थे।
- ' कमाल है यार , अभी पिछले महीने जब चौधरी साहिब की बहु ने लड़की को जन्म दिया था , तब तो चौधरी साहिब का मुँह लटक गया था और अब बछिया के जन्म पर लड्डू बाँट रहे हैं। ' गोबर ने पूछा था।
- ' अरे इतना भी नहीं समझते क्या , बछिया बड़ी होकर दूध देगी जबकि लड़की को पढ़ाओ , लिखाओ , खिलाओ , पिलाओ और एक दिन बड़े दहेज के साथ किसी बैल के घर बाँध आओ। यानी नुक्सान ही नुक्सान। ' बुजुर्ग ने समझाया।
-' सही कह रहे हो भाई , कलयुग है और इस कलयुग में इंसानों की औकात जानवरों से भी कम है। ' कहते हुए गोबर ने चौधरी साहिब के लड्डू से अपना मुँह भर लिया।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
No comments:
Post a Comment