क्त एवं क्तवतु
ये दो प्रत्यय भूतकाल में प्रयुक्त होते हैं। क्त का त तथा क्तवतु का तवत् शेष रहता है।
जाना, चलना अर्थ की और अकर्मक धातुओं से क्त प्रत्यय होने पर कर्ता में प्रथमा व कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है।
उदाहरणार्थ- सः गृहं गतः। सः आगतः। सः सुप्तः। सः मृतः।
सकर्मक धातुओं में क्त प्रत्यय होने पर कर्ता में तृतीया व कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है। क्रिया का लिंग, वचन, विभक्ति कर्म के अनुसार होगी न कि कर्ता के अनुसार।
अकर्मक धातुओं से क्त प्रत्यय होने पर कर्ता में तृतीया व क्रिया में नपुंसक लिंग एकवचन होता है।
क्त प्रत्ययांत शब्द, कर्म के अनुसार पुलिंग हो तो राम के समान, स्त्रीलिंग हो तो रमा के समान और नपुंसक लिंग हो तो धन जैसे रूप चलेंगे।
उदाहरणार्थ- उसने काम किया।
तेन कार्यं कृतम्।
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क्त प्रत्ययान्त शब्द
धातु शब्द अर्थ
अद् जग्ध: खाया
अधि + इ अधीत: पढ़ा
अर्च् अर्चित: पूजा किया
आप् आप्त: पाया
आ+ रभ् आरब्ध: आरम्भ किया
आ + ह्वे आहूत: पुकारा
इष् इष्ट: चाहा
ईक्ष् ईक्षित: देखा हुआ
कथ् कथित: कहा
कुप् कुपित: क्रुद्ध हुआ
कृ कृत: किया
क्री क्रीत: खरीदा
क्रीड् क्रीडित: खेला
क्रुध् क्रुद्ध: क्रुद्ध हुआ
क्षिप् क्षिप्त: फेंका
खाद् खादित: खाया
गण् गणित: गिना
गम् गत: गया
गै गीत: गाया
ग्रह् गृहीत: ग्रहण किया
चल् चलित: चला
चिन्त् चिन्तित: सोचा
चुर् चोरित: चुराया
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उकारान्त नपुंसकलिंग "मधु" शब्द
मधु मधुनी मधूनि
मधु मधुनी मधुनि
मधुना मधुभ्याम् मधुभि: मधुने मधुभ्याम् मधुभ्य:
मधुन: मधुभ्यम् मधुभ्य:
मधुन: मधुनो: मधूनाम्
मधुनि मधुनो: मधुषु
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तकारान्त नपुंसकलिंग जगत् शब्द के रूप
जगत् जगती जगन्ति
जगत् जगती जगन्ति
जगता जगद्भ्याम् जगद्भि:
जगते जगद्भ्याम् जगद्भ्य:
जगत: जगद्भ्याम् जगद्भ्य:
जगत: जगतो: जगताम्
जगति जगतो: जगत्सु
हे जगत् ! हे जगती ! हे जगन्ति
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ईकारान्त स्त्रीलिंग नदी शब्द के रूप
नदी नद्यौ नद्य:
नदीम् नद्यौ नदी:
नद्या नदीभ्याम् नदीभि:
नद्यै नदीभ्याम् नदीभ्य:
नद्या: नदीभ्याम् नदीभ्य:
नद्या: नद्यो: नदीनाम्
नद्याम् नद्यो: नदीषु
हे नदि ! हे नद्यौ ! हे नद्य:
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लट्
शिक्षते शिक्षेते शिक्षन्ते
शिक्षसे शिक्षेथे शिक्षध्वे
शिक्षे शिक्षावहे शिक्षामहे
लोट्
शिक्षताम् शिक्षेताम् शिक्षन्ताम्
शिक्षस्व शिक्षेथाम् शिक्षध्वम्
शिक्षै शिक्षावहै शिक्षामहै
लङ्
अशिक्षत अशिक्षेताम् अशिक्षन्त
अशिक्षथा: अशिक्षेथाम् अशिक्षध्वम्
अशिक्षे अशिक्षावहि अशिक्षामहि
विधिलिङ्
शिक्षेत शिक्षेयाताम् शिक्षेरन्
शिक्षेथा: शिक्षेयाथाम् शिक्षेध्वम्
शिक्षेय शिक्षेवहि शिक्षेमहि
लृट्
शिक्षिष्यते शिक्षिष्येते शिक्षिष्यन्ते
शिक्षिष्यसे शिक्षिष्येथे शिक्षिष्यध्वे
शिक्षिष्ये शिक्षिष्यावहे शिक्षिष्यामहे
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रेफान्त पुलिंग द्वार् शब्द के रूप
द्वा: द्वारौ द्वार:
द्वारम् द्वारौ द्वार:
द्वारा द्वार्भ्याम् द्वार्भि:
द्वारे द्वार्भ्याम् द्वार्भ्य:
द्वार: द्वार्भ्याम् द्वार्भ्य:
द्वार: द्वारो: द्वाराम्
द्वारि द्वारो: द्वार्षु
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शतृ प्रत्ययान्त पुलिंग पठत् शब्द
पठन् पठन्तौ पठन्त:
पठन्तम् पठन्तौ पठत:
पठता पठद्भ्याम् पठद्भि:
पठते पठद्भ्याम् पठद्भ्य:
पठत: पठद्भ्याम् पठद्भ्य:
पठत: पठतो: पठताम्
पठति पठतो: पठत्सु
हे पठन्! हे पठन्तौ ! हे पठन्त:
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[21:49, 24/07/2025] Shrutikirti Acharya: मृङ् प्राणत्यागे लट्
म्रियते म्रियेते म्रियन्ते
म्रियसे म्रियेथे म्रियध्वे
म्रिये म्रियावहे म्रियामहे
लोट्
म्रियताम् म्रियेताम् म्रियन्ताम्
म्रियस्व म्रियेथाम् म्रियध्वम्
म्रियै म्रियावहै म्रियामहै
लङ्
अम्रियत अम्रियेताम् अम्रियन्त
अम्रियथा: अम्रियेथाम् अम्रियध्वम्
अम्रिये अम्रियावहि अम्रियामहि
विधिलिङ्
म्रियेत म्रियेयाताम् म्रियेरन्
म्रियेथा : म्रियेयाथाम् म्रियेध्वम्
म्रियेय म्रियेवहि म्रयेमहि
लृट्
मरिष्यति मरिष्यत: मरिष्यन्ति
मरिष्यसि मरिष्यथ: मरिष्यथ
मरिष्यामि मरिष्याव: मरिष्याम:
[22:00, 24/07/2025] Shrutikirti Acharya: छिदिर् द्वैधीकरणे - लट्
छिनत्ति छिन्त: छिन्दन्ति
छिनत्सि छिन्थ: छिन्थ
छिनद्मि छिन्द्व: छिन्द्म:
लोट्
छिनत्तु छिन्ताम् छिन्दन्तु
छिन्धि छिन्तम् छिन्त
छिनदानि छिनदाव छिनदाम
लङ्
अच्छिनत् अच्छिन्ताम् अच्छिन्दन्
अच्छिन: अच्छिन्तम् अच्छिन्त
अच्छिनदम् अच्छिनद्व अच्छिनद्म
विधिलिङ्
छिन्द्यात् छिन्द्याताम् छिन्द्यु:
छिन्द्या: छिन्द्यातम् छिन्द्यात
छिन्द्याम् छिन्द्याव छिन्द्याम
लृट्
छेत्स्यति छेत्स्यत: छेत्स्यन्ति
छेत्स्यसि छेत्स्यथ: छेत्स्यथ
छेत्स्यामि छेत्स्याव: छेत्स्याम:
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