मेरे मरने के बाद भी
मेरे मरने के बाद भी न कुछ बदलेगा
फूल तब भी खिलेंगे
जुलूस तब भी निकलेंगे
जश्न , हंगामे
यूँ ही रहेंगे महकाते
काली स्याह अँधेरी रातें
सूरज जैसा भी होगा , उगेगा
चाँद बदरिया की धज पर ही रुकेगा
बर्फ यूँ ही रहेगी पिघलती पहाड़ों से
ये और बात है
कुछ नदियाँ फिर भी बहेंगी सूखी
मेरे मरने के बाद भी न कुछ बदलेगा
फिर क्या अर्थ है मेरे मरने का
क्यों मैं घोंपता हूँ
अपनी ही आँखों में सलाखें ?
क्यों मैं काटता हूँ
अपनी मज़बूत टाँगें ?
शायद , हाँ शायद
किसी बंजर आँख में इक गुलाब खिल जाए
उधड़ा हुआ गिरेबाँ किसी का सिल जाए
हाँ , शायद इसीलिए
अर्पित करता हूँ अपने प्राण
पर आज तक समझ नहीं पाया
क्या नाम है इस लालसा का ?
कैसे , कहाँ से आती है मन में ऐसी कामना ?
शायद इसीलिए आज तक मर नहीं पाया
जो भी हो इस कामना का कारण
जब भी हो मेरी मृत्यु
लेकिन हे ईश्वर !
मेरी मृत्यु से पहले मुझे न मारना।
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