शायद अप्रैल का महीना था। हवा में वसंत की ख़ुश्बू अभी तैर रही थी। रात के सन्नाटे में सिर्फ पेड़ो के हिलने की आवाज़ मेरे कानों से गुज़र रही थी। मैं अस्पताल के बिस्तर पर लेटा हुआ था। पलकें नींद से भारी थी लेकिन मैं सो नहीं पा रहा था। अस्पताल का पहला दिन आज भी ज़ेहन में ताज़ा है। मुझे सुबह के वक़्त OPD में दिखाया गया था। सरकारी विशेषज्ञ ने मुझे इस अस्पताल के लिए रेफेर कर दिया था। एक लम्बे गलियारे में , मैं इक स्ट्रेचर पर लेटा हुआ था। एक बुजुर्ग डॉक्टर मेरी जाँच कर रहा था। उसका जाँच करने का तरीका काफी अजीबो ग़रीब था। वह अपने
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