आम की डाली
बचपन का एक क़िस्सा ज़ेहन में आते ही हमेशा हँसी आ जाती है। हमारे गाँव में तीन आम के बग़ीचे थे। ये बग़ीचे किसी एक के न होकर पूरे गाँव के लिए थे । इसलिए जब तूफ़ान आता , आम के कैरियां गिरते तो हम बच्चे सब बटोरने चले जाते । जब आम पकते तो बग़ीचे से छोटे - बड़े आम ,सिंदूरी, काली और जामुनी आम आते , हर एक पेड़ का अलग नाम था । बुआ की लड़की और मेरी दीदी पेड़ पे ऐसे चढ़ती कि बंदर को भी फेल कर दें।
एक सहेली के खेत में एक आम का पेड़ था जो बहुत मीठा था। कच्ची केरी भी इतना मीठा होती थी कि सब की नज़र उसी पेड़ पर रहती थी लेकिन किसी को तोड़ना मना था। उस घर के मालिक बड़े फूफा जी की नज़र उस पर जमी रहती थी कही कोई बच्चे आम न चुरा ले ।
एक दिन दीदी और मेरी बुआ की लड़की को आम चुराने की सूझी लंबी लकड़ी में हंसिया (दराती) बांधकर आम के तने से सटकर तोड़ने लगी ,अभी तो दो तीन ही तोड़ पाए थे कि बंधा हुआ रस्सी खुल गया तो हंसिया पेड़ के डाली पर ही अटका रह गया। यह वाक़्या शाम के वक़्त हुआ था जिसके चलते राज़ खुलने की संभावना अधिक थी। इसी डर से दोनों रात भर सोई ही नहीं। बड़े फूफाजी खूं ख़्वार टाइप के थे। उनका सामना करने में किसी की हिम्मत नहीं थी इसीलिए दोनों बहुत डरी हुई थी। मैं तो यह सोचकर ही भयभीत थी कि अब इनका क्या होगा। सुबह दोनों उठकर फिर खेत में पहुँच गई और उस हंसिया को पेड़ से नीचे गिराया। तभी फूफाजी के खाँसने की आवाज़ आई और वो लोग खेत के कोने से अपने आप को छुपाती हुई निकल गयीं । वो क़िस्सा अभी तक भी भुलाया नहीं जाता और जब उसका ज़िक्र होता है तो हँसी छूट जाती है।
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