गंध अपनी अपनी
हम समझदार हैं
इसीलिए आप मूर्ख हैं
हमारे बोये फूलों को
कैक्टस कहते हैं आप
इनकी ख़ुश्बू से तो
बड़े बड़े कलेक्टर गश खा गए
कहाँ रहते हैं जनाब ?
आपके फूल भी कोई फूल हैं !
न रंग , न सुगंध
इनकी बू नथनों तक जाकर लौट आती है
अपनी व्यथा आप सुनाती है
खिल खिल कर आपके फूल
मंदिर की देहरी पर मुरझाते रहें
या किसी की क़ब्र पर आँसू भाते रहें
हमारे फूलों को देखिए
न किसी के आने में
न किसी के जाने में
हमारे फूल हर हाल में मुस्कुराते हैं
यूँ ही नहीं हम नेताओं को
माला इनकी पहनाते हैं
यक़ीन मानिए
हमारे फूल आत्मा तक उतर जाते हैं
यह और बात है कि
वहाँ भी कैक्टस बो आते हैं।
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