लिखना
हम क्या जानें
अनपढ़ , गँवार
राजनीति , समिति
संसद , राजपथ
मंत्री , प्रधानमंत्री
होगी , जिसकी होगी सरकार
हम को दो रोटी की दरकार
कौन सुनेगा हमारी आपबीती
आप या आपकी राजनीति ?
ज़ात हमारी मज़दूरी है
रोना अपनी मजबूरी है
दो जून की रोटी गर मिल जाए
फूल इस बग़िया के फिर खिल जाएँ
श्रम ही अपनी पूजा है
बाक़ी सब बेकार ,
अख़बार
हम पढ़ नहीं सकते
स्वप्न हम गढ़ नहीं सकते
भैया , तुम कवि हो।,
तुम लिखना
लिखना , हम ग़रीब भी हैं
ग़रीबी की रेखा में भी हैं
रहने को अपने पास कोई घर नहीं है
फिर भी हम यारों ! बेघर नहीं हैं
फुटपॉथ ही अपना बसेरा है
दूर बहुत हमसे सवेरा है
लिखना
हमारा पेट , पेट नहीं कुआँ है
जिसको जितना भरते हैं
उतना ख़ाली होता है
लिखना
मरता है कोई , तो मरे
भूल से भी कोई
इस कुएँ को न भरे
बन के बम
न कहीं कोई फट जाए
किसी रेल के नीचे
न कोई कट जाए
लिखना
किसी के बम बनकर
फटने से पहले लिखना
किसी के रेल से
कटने से पहले लिखना।
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