मैं अधर का गीत बन कर गुनगुनाना चाहता हूँ
हर हृदय का मीत बन मैं खिलखिलाना चाहता हूँ
साज़ मैं मृत्यु का हूँ पर, ज़िंदगी के गीत गाता
फूल काँटों का मगर मैं,हर किसी को हूँ लुभाता
अश्क का दरिया मगर मैं, मुस्कुराना चाहता हूँ
हर हृदय का.....
ख़ून दुश्मन का मगर मैं , दोस्ती के काम आता
अर्क यामा का सही पर , हर नयन में हूँ समाता
दीप धुंधला सा मगर मैं , जगमगाना चाहता हूँ
हर हृदय का......
काम नेकी का मगर मैं , ना बदी को मैं सुहाता
राज़ हूँ मैं ज़िंदगी का, ना समझना कोई चाहता
राग मैं बिखरा हुआ पर कुछ सुनाना चाहता हूँ
या
राग यौवन का नहीं पर, लड़खड़ाना चाहता हूँ
हर हृदय का......
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