शब्द कोई भी प्रेम भरा ,
अब मुझ को ना लिखना तुम।
मेरे जलते ज़ख़्मों पे ,
अब मरहम ना रखना तुम ।
टूटा दिल उजड़ी बस्ती हूँ ,
गुजरा हुआ ज़माना हूँ ।
मुरझाए फूलों पे पसरा ,
गम का शामियाना हूँ ।
मैं टूटी हुई सी सरगम ,
गीत कोई न रचना तुम ।
मेरे जलते जख्मों......
अपने ज़िंदा ज़ख़्मों को हँस ,
आज कफ़न पहनाया है ।
बरसों से इस बोझिल मनको,
मुश्किल से समझाया है ।
बन्द खुली इन पलकों में,
स्वप्न कोई न बुनना तुम ।
मेरे जलते जख्मों......
इस सूने मरघट दिल में ना ,
कोई ख़्वाब मुस्काएगा ।
चन्दन भी जहरीले सर्पों ,
जैसी अगन लगाएगा ।
मिले अगर जो किसी मोड़ पे,
मिलकर भी न मिलना तुम ।
मेरे जलते जख्मों.....
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