शगुन
मनोज की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। घर में ३० बरस बाद ख़ुशियों की कलियाँ मुस्कुराई थीं। उसके ज्येष्ठ पुत्र प्रमोद को सरकारी नौकरी मिल गयी थी और आज उसका विवाह एक सुशील कन्या के साथ होने जा रहा था। घर रिश्तेदारों से भरा हुआ था। हर किस का चेहरा ख़ुशी से चमक रहा था। घर को फूलों से सजाया जा रहा था। शादी के गीत गाये जा रहे थे। तभी अचानक घर के बाहर एक टेम्पो आकर रुका और कुछ तालियों की आवाज़ वातावरणमें गूँज उठी। बधाई देते हुए ८ - १० किन्नर घर के आँगन में प्रवेश कर चुके थे। मनोज ने उन सभी किन्नरों का हाथ जोड़ कर स्वागत किया। किन्नरों ने दूल्हे को आशीर्वाद दिया और नाच - गा कर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करी । मनोज ने सभी को भोजन करवाया। भोजन उपरांत किन्नर जाने लगे तो मनोज उनको नज़राना देने लगा। इस पर किन्नरों के सरदार ने कहा ," बाबू जी , हम यहाँ नज़राना लेने नहीं आये हैं। जीवन में पहली बार किसी ने हमें अतिथि के रूप में बुलाया है। इसलिए आप अपना नज़राना अपने पास रखिये और हमारा शगुन क़बूल करिये। ईश्वर आपके बेटे को लम्बी आयु दें और एक ख़ुशहाल वैवाहिक जीवन। " यह कह कर सरदार ने शगुन का लिफाफा मनोज के हाथ में सरका दिया।
No comments:
Post a Comment