Tuesday, May 13, 2025

शहर और जंगल - भूख

 भूख 


सूखी आँतें कुलबुलाती रहती हैं 

भूख हमें सताती रहती है भूख 

हाँ , दौलत , वासना , कुर्सी , रोटी की भूख 

नून, तेल , लकड़ी , लंगोटी की भूख 

भूख लगने पर 

इंसान , इंसान नहीं रहता  

ईमान , ईमान नहीं रहता 

पर मेरे दोस्त ! भूक लगने पर तुम 

अपनी मुट्ठी बंद ही रखना 

मुट्ठी खुलते ही 

हथेली की लकीरें मिट सकती है 

किसी का चेहरा नौचना 

हमारी आदत बन सकती है 

भूख एक जनून 

पर तुम 

मारना नहीं किसी के पेट पर लात 

भूख अपनी मिटाने को 

निचोड़ लेना अपना ही ख़ून 

पर यह सब भी कब तक 

भूख जाती है मरघट तक 

हाँ ,

भूख से निकल भी जाता है दम 

फिर क्या दफ़ना दें 

इस ख़ाली पेट को हम ?


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