मैं सपनो का सौदागर हूँ
सपनो के बुनता मैं घर हूँ
रात - रात सपने बुनता हूँ
फिर उठ के उनको गिनता हूँ
जो आँखें हो आस से ख़ाली
उन नयनों में जा बसता हूँ
टूट जाउं पर सदा अमर हूँ
मैं सपनो का सौदागर हूँ
बिन सपनो के रात अधूरी
बिन अपनों के बात अधूरी
जीवन ऐसा खेल है जिसमें
बिन ख़ुद हारे मात अधूरी
मैं नाजुक शीशे सा घर हूँ
मैं सपनो का सौदागर हूँ
गीत उसी के मन गाएगा
दर्द जो दिल को दे जाएगा
गहरी नींद सुला मुझको दे
वो सपना अब कब आएगा
आउँ नित नए सपनें लेकर
मैं सपनो का सौदागर हूँ
चाहें तो ऐसे भी कर सकते हैं नहीं तो तीसरे अंतरे की पंक्ति मैं --
"गहरी नींद सुला मुझको दे
वो सपना अब कब आएगा " ऐसा करने से मात्राभार सही हो जाऐगा
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