आवरणहीनता
तुम्हारें ही बोये बीजों से
विघटन , अनास्था , विकृति के
वृक्ष उग आएँ
भूमिगत हो गयी
कोमल आकांक्षाएँ
पहले तो तुमने
नंगा करा था मुझे
पर अब मैं
स्वयं नंगा हो
दिखाऊँगा अपने घाव
अब और
जन्म नहीं ले पाएगा बिखराव
तुम होंठों पर लगे ख़ून को लाख छिपाना
अब नहीं ढँक पाओगे
अपनी आवरणहीनता।
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