अँजुरी भर स्नेह
एक उदास शाम का सूनापन
रात भर दस्ता ही रहा
क़तरा क़तरा दर्द
आँख के समुन्दर से
टपकता ही रहा ,
अब जाने कब मुक्त हो
यह आत्मा , यह देह
जाने कब मिले मन को
अँजुरी भर स्नेह
एक टुकड़ा ख़ुश्बू की तलाश में ही
कट जाती है उम्र यहाँ
सदियों के समर्पण के बाद भी
मिल जाये अँजुरी भर स्नेह
नसीब ही है यहाँ।
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