Saturday, May 31, 2025

Namita Ghazal

 एक गज़ल


 गर्मी थी तेज़ धूप थी रस्ते बबूल थे

चलना था, क्योंकि राह में कुछ आगे फूल थे

   


 चलने से पहले रास्ते लगते थे पुरखतर

जब चल पड़े तो पैरों के कांटे कुबूल थे

 

 आई समझ तो राज़ खुला जा के अब कहीं

छुप छुप के चाहने के वो किस्से फज़ूल थे

  

खुशियाँ बिखेरते हुए आते थे जो नज़र

अन्दर से उनके चेहरे भी कितने मलूल थे


इक वो कि कोई बात भी उनसे न निभ सकी

इक हम वो निभाए जो उनके असूल थे।

  @नमिता राकेश


इज़्ज़त वक़ार चाहे तो खुद को बदल के देख

झूठी अना की क़ैद से बाहर निकल के देख


जिस ग़म ने मेरे दिल को जला के किया है राख

उस ग़म की आग में कभी तू भी तो जल के देख


रस्ते कठिन हैं प्यार के तू हौसला तो रख

मंज़िल की है तलब तो मेरे साथ चल के देख


बच्चों के बाप ने कहा बच्चों की मां से, सुन

खुलने लगे हैं बच्चों के पर,हल्के हल्के , देख


बादल के कान में कहा चुपके हवा ने ,सुन

क़ीमत है तेरी क्या ज़रा सहरा में चल के देख

@ नमिता राकेश

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