बासी गंध
महल मैं क़दम रखते ही
खिल गया राजकुमार का मन
पुती हुई दीवारें
फ़ानूस फ़व्वारे !
महल क्या था
नई नवेली दुल्हन
ताज़ा महकते फूलों सी सजी
दुल्हन रह गयी ठगी की ठगी
मन्द मन्द शर्माती थी
होंठों मैं मुस्काती थी
पिछवाड़े की खिड़की खोली
दुल्हन झिझकी दुल्हन बोली
" सुनिए प्राणों के दास
कैसी है ये बास ? "
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