महक
गन्दी गलियों में भी
एक महक होती है
मैंने अपने आँगन से
चमेली उखड़वा दी है
हर जुलूस एक जनाज़ा होता है
जो कफ़न नहीं ओढ़ता
जहाँ साँस लिया है जाता
वहाँ बरसों लोग रह जाते हैं
मेरे देश में
लोगों ने मरना बंद कर दिया है
तारकोल से ढँका हर चेहरा
हर सड़क यहाँ आवारा है
हम कौन ? तुझे क्या ?
यह पाप सिर्फ हमारा है
यहाँ कौन सी दीवार पर
लगाएँ इश्तहार
मेरे देश में
हर आदमी एक इश्तहार है
और मैं इन सब पर
एक कविता लिख सकता हूँ
किसी साफ़ सुथरे काग़ज़ पर
किसी विलायती पैन से
सिर्फ
एक कविता लिख सकता हूँ।
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