Tuesday, November 26, 2024

Ghazal - Tarahi Misra

 जे ए के आर्ट एण्ड कल्चर फ़ाउन्डेशन की जानिब से अगली नशिस्त के लिए बज़्मे नौ सुख़न के लिए तरही मिसरा मरहूम शायर हसीब सोज़ साहब की ग़ज़ल का मिसरा  दिया जा रहा है 

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मिसरा ए तरही--> 'जिसे रहबर समझते हैं वो रहज़न हो भी सकता है '

वज़्न------------> 1222  1222  1222  1222

अर्कान------> मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन        

क़ाफ़िया----आंगन, दुश्मन, दामन आदि.....

रदीफ़--------> 'हो भी सकता है'

फ़िल्मी गीत 

1-बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है 

2-मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता 


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तो दोस्तों शुरू हो जाइये बेहतरीन अश'आर कहने के लिए 

निवेदक 


जे. ए. के. आर्ट एण्ड कल्चर फ़ाउन्डेशन

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