साहित्य सेवा
उम्र के ६०वे पड़ाव पर पहुँचने के बाद भारतीय मूल के अमेरिकन सेठ ने सेठानी से कहा - " बस अब बहुत हो गया , जीवन भर बहुत कमाया। अब आराम से घर में बैठूंगा और साहित्य सेवा करूँगा। "
- " आराम से घर में बैठेंगे तो घर का खर्च कैसे चलेगा , बिना आमदनी खर्च करते रहो तो ख़ज़ाने भी खाली हो जाते हैं, " सेठानी ने ज्ञान परोसा ।
- "तुझे बताया ना अभी , साहित्य सेवा करूँगा। " सेठ ने ज़ोर से कहा।
- " आपकी साहित्य सेवा से तो पेट भरेगा नहीं " , सेठानी ने अपनी दलील दोहराई।
- " तू बहुत नासमझ है , मैंने आज तक कोई सेवा बिना मेवा के नहीं करी। तुझे मालूम नहीं साहित्य संसार में ऐसे हज़ारों कवि - लेखक भरे पड़े हैं , जिन्हें कोई पूछता तक नहीं। उन्हें छपास की बीमारी है , बस उन्हीं कवियों के साझा संकलन प्रकाशित करूँगा। "
- " उससे क्या होगा ? " सेठानी ने जिज्ञासा से पूछा।
- " उससे ये होगा कि सभी कवि अपने लिए कुछ प्रतियाँ ख़रीदेंगे , किताब की क़ीमत दुगनी रखी जाएगी लेकिन फिर भी सभी सहर्ष पुस्तकों को ख़रीदेंगे और किताब पर अमेरिकन मुहर भी तो होगी।, देखना ख़ूब किताबे बिकेंगी , सेवा की सेवा , मेवा की मेवा "
सेठानी अपने ज़हीन पति के इस जुमले पर मुस्कराये बिना ना रह सकी।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
Published - Indore Samachar - 11-01-2025
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