अगर एक मूल शब्द है और दूसरा योजित शब्द है तो मूल शब्द का हर्फे रबी मतलब अंतिम अक्षर योजित शब्द के अंतिम अक्षर से समानता रखता है (अंतिम अक्षर हर्फे वस्ल, हर्फे खुरूज, हर्फे मजीद या फिर क्षर्फे नाइरा कोई भी हो सकता है) तो ऐसे क़ाफ़िये जा़यज होते हैं। जैसे -
समन्दर और बिछुड़कर काफिये लेने पर समन्दर मूल शब्द है और बिछुड़कर शब्द योजित है। ( क्योंकि इसमें हर्फे वस्ल क और हर्फे खुरूज र जुड़ा है) समन्दर में हर्फे रबी " र " है और बिछुड़कर में अंतिम अक्षर हर्फे खुरूज " र " आपस में समान हैं इसलिए ऐसे क़ाफ़िये जायज हैं। जब काफिये उपरोक्त नियम से ज़ायज नहीं होते हैं तो इसे ईता का ऐब कहते हैं।
ईता का ऐब दो प्रकार का होता है
1.ईता ए ख़फ़ी
2. ईता ए जली
ईता ए ख़फ़ी को छोटी ईता भी कहते हैं। जब ईता का ऐब हो मगर स्पष्ट दिखाई नहीं दे उसमेँ छुपा हुआ हो तब ईता का यह ऐब ईता ए ख़फ़ी कहलाता है।
जैसे- गुलाब ( गुल +आब)
और शराब( शर+आब) काफिया मतले में बाँधने पर मूल शब्द गुल और शर में आब को ओड़ा गया है । यहां पर आब हटा देने पर दोनों में हर्फे रबी अलग अलग.होने के कारण ईता का ऐब है।लेकिन यह ऐब स्पष्ट नही दिख रहा है इसलिए ये ईता ए ख़फ़ी का ऐब हैः
ईता ए जली को बड़ी इता भी.कहते हैं। जब योजित शब्द को मतले में काफिया बाँधते हैं तब बढ़े हुये अंश को हटाने पर शेष जो मूल शब्द बचता है उसका हर्फे रबी यदि नहीं मिलता है और यह स्पष्ट दिखाई देता है तो इसे बडी ईता कहते हैं । जैसे-
खोलकर और देखकर
दोनों में मूल शब्द खोल और.देख में कर जोड़कर नया खोलकर और देखकर योजित शब्द बना है अब दोनों मे से जोड़े गये अंश कर को हटा देने पर खोल और देख बचता है जिसका हर्फे रबी एक समान नहीं है इसलिए यह ईता का ऐब.है और यह ऐब स्पष्ट दिख रहा है इसलिए यह ईता ए जली कहलायेगा।
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