क़ाफ़िया में इक्वा का ऐब
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क़ाफ़िया में हर्फ़े रबी के पहले जो स्वर आता है वही स्वर आगे हर क़ाफ़िया में आना अनिवार्य है।ऐसा न होने पर क़ाफ़िया में ऐब हो जाता है। इस ऐब को इक्वा का ऐब कहते हैं। जैसे
काफिया "डर" में हर्फ़े रबी "र" है। इस हर्फे रबी के पहले "अ" स्वर का उच्चारण है । इसलिए आगे के काफिये में "अ" स्वर हर्फे रबी के पहले आना चाहिए। अत: डर" के साथ "पर" , "सर","मगर" आदि आयेगा क्योंकि इन काफिये में र के पहले अ स्वर आ रहा है। यदि हम क़ाफ़िया "घिर " ,"फिर" , " साहिर" आदि लेते हैं तो " र" के पहले "इ"स्वर आने से इक्वा का ऐब पैदा होगा। इस प्रकार क़ातिल, मुश्किल, बेदिल, शामिल के साथ पायल, बादल ,चावल, मक्तल ,गुल , बुलबुल , आदि क़ाफ़िया बाँधने से इक्वा का ऐब पैदा हो जायेगा।
अगर मतले में हर्फे रबी के बाद कोई ब्यंजन दोनों काफिये में शामिल है तो आगे आने वाले क़ाफ़िये में हर्फे रबी के साथ उस ब्यंजन को भी लेना अनिवार्य होगा साथ ही उसके पहले जो स्वर है वह भी आयेगा । जैसे मतले में हवा के साथ दवा क़ाफ़िया लिया गया तो आगे के काफ़िये में रवा ,तवा, आदि आयेगा लेकिन सिवा, युवा नहीं आयेगा क्योंकि हर्फे रबी यहां आ की मात्रा है। इसके पहले व ब्यंजन आ रहा है लेकिन इसके पहले अ स्वर है इसलिए हवा दवा के साथ रवा त़ो आयेगा लेकिन सिवा और युवा आने पर व के पहले स्वर इ आ गया है जो स्वर अ से भिन्न है अत: ऐसे क़ाफ़िये इक्वा ऐब के अन्तर्गत आयेंगे।
शौती क़ाफ़िया या इक़्फ़ा का ऐब
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ऐसे का़फ़िये जिनमें हर्फे रबी की ध्वनि उच्चारण में लगभग समान हो लेकिन लिखने में अलग हो तो ऐसे क़ाफ़िये इक़्फ़ा ऐब वाले कहलाते हैं जैसे हिन्दी में श और ष का उच्चारण लगभग एक जैसा है। यहां यदि हर्फे रबी श की जगह किसी क़ाफ़िया मे ष ले लिया जावे तो पढ़ने में उच्चारण एक समान है लेकिन अक्षर अर्थात हर्फे रबी अलग हो गया जो कि एक ऐब हे। यह ऐब ही शौती क़ाफ़िया या इक्फ़ा ऐब है। जैसे शेष के साथ क्लेश क़ाफ़िया ऐब पैदा कर रहा है।.
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