ग़ज़ल में क़ाफ़िया लेते समय ध्यान रखना होगा कि एक मूल शब्द का हर्फे रबी दूसरे मूल शब्द के हर्फे रबी से मिलना चाहिए। जैसे- कमल के साथ जल, बदल , सरल , महल आदि। क्यों सभी में हर्फे रबी ल मिल रहा है इसलिए ये काफिया सही है। अब कमल के साथ सबक़ काफिया बाँधना गलत होगा क्योंकि कमल में हर्फे रबी ल है और सबक़ में हर्फे रबी क़ है जो कि ल से अलग है इसलिए ये क़ाफ़िया गलत होगा।
किसी मूल शब्द में जब कुछ अक्षर या मात्रा जोड़ देते हैं
अर्थात मूल शब्द में हर्फे वस्ल, हर्फे खुरूज, हर्फे मजीद, हर्फे नाइरा जब जुड़ जाता है और सार्थक शब्द बन जाता है तो ऐसे शब्द योजित शब्द कहलाते हैं।
1. अब योजित शब्द को जब मतले में बाँधा जाता है ऐसे समान अक्षर जो दोनों काफिये में जोड़े गये हों उन्हें यदि हटा दिया जाये तो शेष बचा हुआ अंश हम काफिया मतलब हर्फे रबी दोनों मिलना चाहिए।
जैसे- संभलकर और निकलकर
दो मूल शब्द संभल और निकल में "कर " जोड़कर ( हर्फे वस्ल और.हर्फे खुरूज यहां पर जोड़ा गया है ) नया शब्द संभलकर और निकलकर बनाया गया है। अब यहां यदि जोड़ा हुआ अंश " कर" हटा दें तो शेष "संभल "और "निकल" बचता है और ये हम काफिया है क्योंकि दोनों
में हर्फे रबी "ल " है और यहां हर्फे रबी दोनों में समान है इसलिये ये क़ाफ़िया जायज है। यदि हर्फे रबी नहीं मिलता तो काफिये ग़लत होता । जैसे-
दुश्मनी और दोस्ती काफिया बाँधना ग़लत होगा क्योंकि दोनों में बढ़ा अंश ई( हर्फे वस्ल) की मात्रा हटा देने पर शेष बचा अंश है- दुश्मन और दोस्त बचता है दुश्मन में हर्फे रबी "न " है और दोस्त में हर्फे रबी " त " है। दोनों में हर्फे रबी "न" और " त " में एक समानता नहीं है। दोनों समान न होने से ये क़ाफिया ग़लत है।
दुश्मनी और रोशनी का काफ़िया ज़ायज है क्योंकि दोनों में से हर्फे वस्ल ई हटा देने से शेष दुश्मन और रोशन बचता है जो काफिया के मूल शब्द हैं और जिसका अंतिम अक्षर अर्थात हर्फे रबी "न" है जो दोनों में एक समान है इस लिये ये का़फ़िया जायज है।
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