मुक्तक :
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
2122 2122 2122 212
ग़म में डूबा साज़ भी कोई यहां गाता नहीं
आँख में ठहरा हुआ आंसू कही जाता नहीं
दिल मिरा वीरान फिर आबाद हो सकता है पर
दिलजला कोई सनम रहने यहां आता नहीं
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
मुक्तक:
( फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन
22 22 22 22 )
अधरों की मुस्कान बना मैं
खुशबू की पहचान बना मैं
किशना की मुरली में ढ़लकर
सूर बना रसखान बना मैं
( फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन
22 22 22 22 )
----------------------------------------------------
प्रीत की एक नदी लगती हो
एक लम्हे की सदी लगती है
आने वाली है कयामत अब तो
आसमानी सी परी लगती हो
फाइलातुन फइलातुन फैलुन
2122 1122 22
---------------------------------------------------------------------
पत्थर से शीशा बन जाना सब के बस की बात नहीं
सीने में ग़म को दफ़नाना सब के बस की बात नहीं
ग़ैरों के रिसते ज़ख़्मों पर कोई भी हँस लेता है
अपने ज़ख़्मों पर मुस्काना सब के बस की बात नहीं
फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फा
22 22 22 22 22 22 22 2
-----------------------------------------------------------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment