Tuesday, November 5, 2024

FINAL - GHAZAL BOOK

 मुक्तक :

फाइलातुन फाइलातुन  फाइलातुन फाइलुन

2122   2122   2122  212


ग़म में डूबा साज़ भी कोई  यहां  गाता नहीं 

आँख में ठहरा  हुआ आंसू कही जाता नहीं 

दिल मिरा वीरान फिर आबाद हो सकता है पर

दिलजला  कोई सनम रहने यहां आता नहीं

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 मुक्तक:

( फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन

22   22   22   22 )


अधरों की मुस्कान  बना मैं

खुशबू की पहचान बना मैं

किशना की मुरली में ढ़लकर

सूर बना रसखान बना मैं

( फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन

22   22   22   22 )

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प्रीत की एक नदी लगती हो

एक लम्हे  की सदी लगती है

आने  वाली है  कयामत अब तो 

आसमानी सी परी लगती हो


फाइलातुन  फइलातुन फैलुन

2122         1122     22

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पत्थर से  शीशा बन जाना सब के बस की बात नहीं 

सीने में ग़म को दफ़नाना सब के बस की बात नहीं 

ग़ैरों के रिसते ज़ख़्मों पर कोई भी हँस लेता है

अपने ज़ख़्मों पर मुस्काना सब के बस की बात नहीं


 फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फा

22  22  22  22 22  22  22 2

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मुस्तफ्इलुन  मुस्तफ्इलुन  मुस्तफ्इलुन
    2212       2212        2212
ठहरे हुये कितने ही पैमाने मिले
गुजरे हुये कितने ही अफसाने मिले
आँखें नहीं गहरी है कोई झील ये
डूबे हुये कितने ही दीवाने मिले
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Ghazal 

जलता हुआ चिराग़ भी बुझता हुआ लगा 
तब रात का ख़ुमार भी उतरा हुआ लगा 

कुछ रात भी उदास थी दरपन को देखकर
'उस शोख़ का मिज़ाज भी उखड़ा हुआ लगा'

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मुहब्बत को दिल में बसाये तू  रखना 

सदा शम्अ-ए-उल्फ़त जलाये तू  रखना

मिलन दो दिलों का न आसान होगा 

मगर दिल से दिल को लगाए तू रखना

फऊलुन     फऊलुन  फऊलुन फऊलुन
122   122   122   122

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