कितने हाथों ने तराशे ये हसीं ताज-महल
झाँकते हैं दर-ओ-दीवार से क्या क्या चेहरे
-जमील मलिक
एक कमी थी ताज-महल में
मैं ने तिरी तस्वीर लगा दी
-कैफ़ भोपाली
तुम से मिलती-जुलती मैं आवाज़ कहाँ से लाऊँगा
ताज-महल बन जाए अगर मुम्ताज़ कहाँ से लाऊँगा
-साग़र आज़मी
इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है
-शकील बदायूनी
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
-साहिर लुधियानवी
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