पत्थर से शीशा बन जाना सब के बस की बात नहीं
सीने में ग़म को दफ़नाना सब के बस की बात नहीं
ग़ैरों के रिसते ज़ख़्मों पर कोई भी हँस लेता है
अपने ज़ख़्मों पर मुस्काना सब के बस की बात नहीं
( फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फा
22 22 22 22 22 22 22 2
इसमें कभी कभी 2112 आने पर 11 कौ 2 मान लिया जाता है यह हिन्दी छन्द पर आधारित है
इसलिए 121 भी मान लिया जाता है। लय में मिसरा होना चाहिए । साथ में कुल मात्रा टोटल एक समान होना चाहिए )
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अधरों की मुस्कान बना मैं
खुशबू की पहचान बना मैं
किशना की मुरली में ढ़लकर
सूर बना रसखान बना मैं
( फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन
22 22 22 22 )
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ठहरे हुए कितने पैमाने है इनमें
गुज़रे हुए कितने ज़माने है इनमें
ये आँखें नहीं गहरी झील हैं यारों
डूबे हुए कितने दीवाने हैं इनमें
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