Thursday, October 10, 2024

युवा कवि गोलेन्द्र पटेल की छह कविताएँ :-

 युवा कवि गोलेन्द्र पटेल की छह कविताएँ :-


1).


मेरा दुःख मेरा दीपक है

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जब मैं अपनी माँ के गर्भ में था

वह ढोती रही ईंट

जब मेरा जन्म हुआ वह ढोती रही ईंट

जब मैं दुधमुंहाँ शिशु था

वह अपनी पीठ पर मुझे

और सर पर ढोती रही ईंट


मेरी माँ, माईपन का महाकाव्य है

यह मेरा सौभाग्य है कि मैं उसका बेटा हूँ

मेरी माँ लोहे की बनी है

मेरी माँ की देह से श्रम-संस्कृति के दोहे फूटे हैं

उसके पसीने और आँसू के संगम पर

ईंट-गारे, गिट्टी-पत्थर,

कोयला-सोयला, लोहा-लक्कड़ व लकड़ी-सकड़ी के स्वर सुनाई देते हैं


मेरी माँ के पैरों की फटी बिवाइयों से पीब नहीं,

प्रगीत बहता है

मेरी माँ की खुरदरी हथेलियों का हुनर गोइंठा-गोहरा

की छपासी कला में देखा जा सकता है


मेरी माँ धूल, धुएँ और कुएँ की पहचान है

मेरी माँ धरती, नदी और गाय का गान है

मेरी माँ भूख की भाषा है

मेरी माँ मनुष्यता की मिट्टी की परिभाषा है

मेरी माँ मेरी उम्मीद है


चढ़ते हुए घाम में चाम जल रहा है उसका

वह ईंट ढो रही है

उसके विरुद्ध झुलसाती हुई लू ही नहीं,

अग्नि की आँधी चल रही है

वह सुबह से शाम अविराम काम कर रही है

उसे अभी खेतों की निराई-गुड़ाई करनी है

वह थक कर चूर है

लेकिन उसे आधी रात तक चौका-बरतन करना है

मेरे लिए रोटी पोनी है, चिरई बनानी है

क्योंकि वह मजदूर है!


अब माँ की जगह मैं ढोता हूँ ईंट

कभी भट्ठे पर, कभी मंडी का मजदूर बन कर शहर में

और कभी-कभी पहाड़ों में पत्थर भी तोड़ता हूँ

काटता हूँ बोल्डर बड़ा-बड़ा

मैं गुरु हथौड़ा ही नहीं

घन चलाता हूँ खड़ा-खड़ा


टाँकी और चकधारे के बीच मुझे मेरा समय नज़र आता है

मैं करनी, बसूली, साहुल, सूता, रूसा व पाटा से संवाद करता हूँ

और अँधेरे में ख़ुद बरता हूँ दुख


मेरा दुख मेरा दीपक है!


मैं मजदूर का बच्चा हूँ

मजदूर के बच्चे बचपन में ही बड़े हो जाते हैं

वे बूढ़ों की तरह सोचते हैं

उनकी बातें

भयानक कष्ट की कोख से जन्म लेती हैं

क्योंकि उनकी माँएँ

उनके मालिक की किताबों के पन्नों पर

उनका मल फेंकती हैं

और उनके बीच की कविता सत्ता का प्रतिपक्ष रचती है।


मेरी माँ अब वही कविता बन गयी है

जो दुनिया की ज़रूरत है!

*


2).


चोकर की लिट्टी

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मेरे पुरखे जानवर के चाम छीलते थे 

मगर, मैं घास छीलता हूँ


मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ

मेरे सिर पर 

चूल्हे की जलती हुई कंडी फेंकी गयी

मैंने जलन यह सोचकर बरदाश्त कर ली

कि यह मेरे पाप का फल है

(शायद अग्निदेव का प्रसाद है)


मैं पतली रोटी नहीं, 

बगैर चोखे का चोकर की लिट्टी खाता हूँ


चपाती नहीं, 

चिपरी जैसी दिखती है मेरे घर की रोटी

मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ


मुझे हमेशा कोल्हू का बैल समझा गया

मैं जाति की बंजर ज़मीन जोतने के लिए

जुल्म के जुए में जोता गया हूँ

मेरी ज़िंदगी देवताओं की दया का नाम है

देवताओं के वंशजों को मेरा सच झूठ लगता है

मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ


मैं कैसे किसी देवता को नेवता दूँ?

मेरे घर न दाना है न पानी

न साग है न सब्जी

न गोइंठी है न गैस

मुझे कुएँ और धुएँ के बीच सिर्फ़ धूल समझा जाता है

पर, मैं बेहया का फूल हूँ

देवी-देवता मुझे हालात का मारा और वक्त का हारा कहते हैं

मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ


देखो न देव, देश के देव! 

मैं अब भी चोकर का लिट्टा गढ़ रहा हूँ, 

चोकर का रोटा ठोंक रहा हूँ

क्या तुम इसे मेरी तरह ठूँस सकते हो?

मैं भाषा में अनंत आँखों की नमी हूँ

मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ

*


3).


जंगल में जन्मदिन

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हम हैं नयी सदी के रचनाकार

हमारा जन्मदिन

ज़मीन पर नहीं,

आसमान में, करियाती गंधाती नदी में,

जल रहे जंगल में,

हमारे कद से छोटे पहाड़ पर

मनाया जाए

ताकि हम प्रकृति-प्रिय

पाठकों की पुतलियों में रहें


भले ही, असल जिंदगी में

रहें या न रहें

रचना में रहना है रहनुमा की तरह

उदार!

*


4).


रंगोत्सव

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परिंदें गा रहे हैं फाग

कितने क़ीमती हैं

स्पर्श-सुख रूप-रस रव-राग?


पेड़ो!

पतझड़ में उदास मत होना

जो गंध हवा की सवारी कर रही है

उसने जीवन की कथा कही,

फूल मुरझाते हैं

रंग नहीं।

*


5).


उम्मीद की उपज

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उठो वत्स!

भोर से ही

जिंदगी का बोझ ढोना

किसान होने की पहली शर्त है

धान उगा

प्राण उगा

मुस्कान उगी

पहचान उगी

और उग रही

उम्मीद की किरण

सुबह सुबह

हमारे छोटे हो रहे

खेत से….!

*


6).


थ्रेसर

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थ्रेसर में कटा मजदूर का दायाँ हाथ

देखकर

ट्रैक्टर का मालिक मौन है

और अन्यात्मा दुखी

उसके साथियों की संवेदना समझा रही है

किसान को

कि रक्त तो भूसा सोख गया है

किंतु गेहूँ में हड्डियों के बुरादे और माँस के लोथड़े

साफ दिखाई दे रहे हैं


कराहता हुआ मन कुछ कहे

तो बुरा मत मानना

बातों के बोझ से दबा दिमाग

बोलता है / और बोल रहा है

न तर्क , न तत्थ

सिर्फ भावना है

दो के संवादों के बीच का सेतु

सत्य के सागर में

नौकाविहार करना कठिन है

किंतु हम कर रहे हैं

थ्रेसर पर पुनः चढ़ कर -


बुजुर्ग कहते हैं

कि दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है

तो फिर कुछ लोग रोटी से खेलते क्यों हैं

क्या उनके नाम भी रोटी पर लिखे होते हैं

जो हलक में उतरने से पहले ही छिन लेते हैं

खेलने के लिए


बताओ न दिल्ली के दादा

गेहूँ की कटाई कब दोगे?

*


©गोलेन्द्र पटेल 


संपर्क :

डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।

पिन कोड : 221009

व्हाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com


लिंक:- https://youtu.be/VG40YQrFOuY?si=lv_UOKH9K9iq_UJH


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