Monday, October 28, 2024

कलकत्ता

 महरूम हूँ मैं ख़िदमत-ए-उस्ताद से 'मुनीर' 

कलकत्ता मुझ को गोर से भी तंग हो गया 

-मुनीर शिकोहाबादी


कोई छींटा पड़े तो 'दाग़' कलकत्ते चले जाएँ 

अज़ीमाबाद में हम मुंतज़िर सावन के बैठे हैं 

-दाग़ देहलवी


ख़्वाब आँसू एहतजाजी ज़िंदगी 

पूछिए मत शहर-ए-कलकत्ता है क्या 

-अम्बर शमीम


सिसकती आरज़ू का दर्द हूँ फ़ुटपाथ जैसा हूँ 

कि मुझ में छटपटाता शहर-ए-कलकत्ता भी रहता है 

-खुर्शीद अकबर


सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले 

गुनगुनाते हुए इक शोख़ का अफ़्साना चले 

-अख़्तर शीरानी


कलकत्ता से भी कीजिए हासिल कोई तो इल्म 

सीखेंगे सेहर-ए-सामरी हम चश्म-ए-यार से 

-अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी


ला-मकाँ है वास्ते उन की मक़ाम-ए-बूद-ओ-बाश 

गो ब-ज़ाहिर कहने को कलकत्ता और लाहौर है 

-शाह आसिम


कलकत्ता में हर दम है 'मुनीर' आप को वहशत 

हर कोठी में हर बंगले में जंगला नज़र आया 

-मुनीर शिकोहाबादी


कलकत्ता जो रहते थे 

गाँव वाले हँसते थे 

-अबुल लैस जावेद

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