Sunday, October 27, 2024

Question - Sher

 इश्क़ कच्चे घड़े पे डूब गया

लम्हा जब इंतिज़ार का आया


गर न टूटे ये शीशा-ए-दिल

तेरा हुस्न कमाल होगा


- -ए जी जोश
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कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब

गालियाँ खा के बे-मज़ा हुआ

मिर्ज़ा ग़ालिब

नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं

तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं

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पड़ जाएँ मिरे जिस्म पे लाख आबले 'अकबर'

पढ़ कर जो कोई फूँक दे अप्रैल मई जून

- अकबर इलाहाबादी

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