इश्क़ कच्चे घड़े पे डूब गया
लम्हा जब इंतिज़ार का आया
गर न टूटे ये शीशा-ए-दिल
तेरा हुस्न कमाल होगा
- -ए जी जोश
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कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
गालियाँ खा के बे-मज़ा न हुआ
मिर्ज़ा ग़ालिब
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं
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पड़ जाएँ मिरे जिस्म पे लाख आबले 'अकबर'
पढ़ कर जो कोई फूँक दे अप्रैल मई जून
- अकबर इलाहाबादी
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