Saturday, August 31, 2024

फ़्लैश बैक - गज़क

 गज़क


चौरासी घंटे मंदिर से 

तीन दुकानें छोड़  

थी गज़क वाले कि दुकान

जो ख़ुद बनाता था गज़क 

सोने और चाँदी वाली गज़क 

यानी 

गुड़ और चीनी कि गज़क 

एक बार फ़राशख़ाने में देखा 

गज़क बनते हुए 

लकड़ी के एक खम्बे पर 

गज़क कि लोई को पीटा जाता 

ज़ोर ज़ोर से 

बस तभी से 

गज़क खाने का शौक़ 

जाता रहा मन से। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस    

Friday, August 30, 2024

फ़्लैश बैक - वैद्य जी

 वैद्य जी 


चौरासी घंटे मंदिर के सामने 

आयुर्वेदिक दवाख़ाना

और वैद्य जी कैलाश चंद

आज भी स्मृति में ताज़ा है 

गोरा रंग , लम्बा क़द

नेहरू टोपी , कुरता और धोती 

विनम्र और मृदुभाषी ,

अक्सर जाता था उनके पास 

पेट के दर्द का बहाना बना 

लिखते थे पर्चे पे    

अजीब - सी लिखावट 

जिसे पढ़ पाता था 

बस उनका कम्पाउण्डर 

जो तभी बनाता था चूरन ताज़ा 

जिसको चाटने में 

मुझे आता था बहुत मज़ा 

चूरन की पुड़िया अपनी जेब में रख 

मैं ख़ुशी - ख़ुशी लौट जाता था घर। 


कवि -  इन्दुकांत आंगिरस 

Wednesday, August 28, 2024

फ़्लैश बैक - भिश्ती

 भिश्ती 


अब तो एक ज़माने से 

मैंने किसी भिश्ती को नहीं देखा 

अपने गले में 

चमड़े की मश्क लटकाये 

वो करता था नालियाँ साफ़,

बहता था पानी से 

नालियों में रुका हुआ मल ,

आज  हमारे समाज में 

पहले से भी अधिक है मल ,

लोगों के दिमाग़ में 

भरा हुआ है बहुत - सा कचरा 

लेकिन अब भिश्ती नज़र नहीं आते 

वास्तव में आज पहले से भी 

अधिक ज़रूरत है भिश्तियों की। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस  





मिड डे मील्स

 मिड डे मील्स 


गर्मियों की छुट्टियों के  बाद आज ही स्कूल खुले थे।  हिंदी के अध्यापक नए साल की पहली कक्षा ले रहे थे।  नया पाठयक्रम , नए बच्चें। बच्चों के मन में उत्साह था और उनके चेहरे खिले हुए थे। अभी अध्यापक ने पाठ पढ़ाना आरम्भ ही किया था कि स्कूल का चपरासी एक सर्कुलर ले कर आया।  अध्यापक ने सर्कुलर को मन ही मन पढ़ा और फिर बच्चों से कहा -" बच्चों ! आपको जान कर ख़ुशी होगी की स्कूल ने मिड डे मील्स की योजना आरम्भ की है जिसके अंतर्गत आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों को स्कूल की तरफ़ से मुफ़्त मिड डे मील्स प्रदान किया जायेगा। इसके लिए आपको अपने परिवार का इनकम सर्टिफिकेट स्कूल में जमा कराना होगा। ५००००/ रूपये सलाना से कम आय वाले प्रत्याशी इस योजना का लाभ उठा पाएँगे। "

अध्यापक द्वारा घोषणा सुन कर राजीव अपनी सीट पर खड़ा हो कर अध्यापक से कहने लगा - " सर , मेरे पिता की आय तो ३ लाख रूपये सलाना हैं लेकिन मैं इस योजना का लाभ उठाना चाहता हूँ। "

- " जब आप समर्थ हैं तो आप इस योजना का लाभ क्यों उठाना चाहते हैं ? " अध्यापक ने छात्र से पूछा। 

- " सर , बात ये हैं कि मेरी माँ सुबह जल्दी काम पर निकल जाती है और मैं क्रिकेट की कोचिंग लेने जाता हूँ।  घर पर सुबह नाश्ता नहीं बनता और मुझे भूखे पेट स्कूल आना पड़ता है। "

- " देखो राजीव , ये सब आपकी पारिवारिक समस्या है , नियमानुसार , योजना का लाभ उसी को मिलेगा जिसकी पारिवारिक आय ५००००/ से कम होगी।  

- " ठीक है सर , कल मैं स्कूल में ५००००/ आय का सर्टिफिकेट जमा कर दूँगा , तब देखता हूँ  मुझे मिड डे मील्स लेने से कौन रोकेगा। " -राजीव ने तैश में जवाब दिया। 


अध्यापक राजीव का जवाब सुन कर  ख़ामोश हो गया ओर उन्होंने   उस ग़रीब बच्चे की ओर देखा  जो ग़रीब हो कर भी मिड डे मील्स की योजना का लाभ नहीं लेना चाहता था।  


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ख़ैरात 


गर्मियों की छुट्टियों के  बाद आज ही स्कूल खुले थे।  हिंदी के अध्यापक नए साल की पहली कक्षा ले रहे थे।  नया पाठयक्रम , नए बच्चें। बच्चों के मन में उत्साह था और उनके चेहरे खिले हुए थे। अभी अध्यापक ने पाठ पढ़ाना आरम्भ ही किया था कि स्कूल का चपरासी एक सर्कुलर ले कर आया।  अध्यापक ने सर्कुलर को मन ही मन पढ़ा और फिर बच्चों से कहा -" बच्चों ! आपको जान कर ख़ुशी होगी की स्कूल ने मिड डे मील्स की योजना आरम्भ की है जिसके अंतर्गत आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों को स्कूल की तरफ़ से मुफ़्त मिड डे मील्स प्रदान किया जायेगा। इसके लिए आपको अपने परिवार का इनकम सर्टिफिकेट स्कूल में जमा कराना होगा। ५००००/ रूपये सलाना से कम आय वाले प्रत्याशी इस योजना का लाभ उठा पाएँगे। इसलिए जो भी इस योजना का लाभ उठाना चाहते हैं वे इस रजिस्टर मैं अपना नाम दर्ज कर दें।  "

अध्यापक की घोषणा सुन कर कुछ बच्चों ने अपना नाम रजिस्टर मैं लिख दिया।  अध्यापक ने देखा कि कक्षा में  आख़री  बेंच पर बैठा  कैलाश  

बहुत उदास  लग रहा था।  अध्यापक को मालूम था कि कैलाश बहुत ग़रीब परिवार से है और उसे इस योजना का लाभ उठाना ही चाहिए लेकिन कैलाश अपनी सीट पर बैठ रहा और उसने रजिस्टर में अपना नाम दर्ज नहीं किया।क्लास समाप्त होने पर अध्यापक ने कैलाश  को 

अपने कमरे में बुलवाया और उससे पूछा - " कैलाश , मैं जानता हूँ कि तुम बहुत ग़रीब परिवार से हो तो फिर तुम इस योजना का लाभ क्यों नहीं उठाना चाहते ? मैंने देखा कि तुमने रजिस्टर मैं अपना नाम दर्ज नहीं किया। " अध्यापक की बात सुन कर कैलाश ने कहा - " सर , हम ग़रीब ज़रूर है लेकिन बेग़ैरत नहीं हैं। इस तरह  की ख़ैरात हमे नहीं चाहिए। हम भूखे मर जायेंगे लेकिन किसी के टुकड़ों पर नहीं पलेंगे। "

कैलाश का जवाब सुन कर अध्यापक मौन हो गया।  

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मिड डे मील्स


स्कूल में मिड डे मील्स की नई योजना शुरू  हुई थी जिसके तहत ग़रीब बच्चों को मुफ़्त मिड डे मील्स उपलब्ध कराया जाना था। इस योजना के अनुसार इस योजना का लाभ सिर्फ़  वो बच्चें उठा पाएंगे जिनकी पारिवारिक सलाना आय 75,000/ से कम होगी।   

अध्यापक द्वारा मिड डे मील्स घोषणा सुन कर राजीव अपनी सीट पर खड़ा हो कर अध्यापक से कहने लगा - " सर , मेरे पिता की आय तो ३ लाख रूपये सलाना हैं लेकिन मैं इस योजना का लाभ उठाना चाहता हूँ। "

- " जब आप समर्थ हैं तो आप इस योजना का लाभ क्यों उठाना चाहते हैं ? " अध्यापक ने छात्र से पूछा। 

- " सर , बात ये हैं कि मेरी माँ सुबह जल्दी काम पर निकल जाती है और मैं क्रिकेट की कोचिंग लेने जाता हूँ।  घर पर सुबह नाश्ता नहीं बनता और मुझे भूखे पेट स्कूल आना पड़ता है। "

- " देखो राजीव , ये सब आपकी पारिवारिक समस्या है , नियमानुसार , योजना का लाभ उसी को मिलेगा जिसकी पारिवारिक आय 75,000/ से कम होगी।  

- " ठीक है सर , कल मैं स्कूल में 75,000/ आय का सर्टिफिकेट जमा कर दूँगा , तब देखता हूँ  मुझे मिड डे मील्स लेने से कौन रोकेगा। " -राजीव ने तैश में जवाब दिया। 

अध्यापक राजीव का जवाब सुन कर  ख़ामोश हो गया ओर उसने   उस ग़रीब बच्चे की ओर देखा  जो ग़रीब हो कर भी मिड डे मील्स की योजना का लाभ नहीं लेना चाहता था। 


लेखक  -  इन्दुकांत आंगिरस 









Monday, August 26, 2024

Dil Dilli Dariya

 दिल्ली में आज भीक भी मिलती नहीं उन्हें 

था कल तलक दिमाग़ जिन्हें ताज-ओ-तख़्त का 


- मीर तक़ी मीर


दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है 

जो भी गुज़रा है उस ने लूटा है 


बशीर बद्र


चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है 

जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है 


मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद


दिल्ली कहाँ गईं तिरे कूचों की रौनक़ें 

गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं 


जाँ निसार अख़्तर


अमीर-ज़ादों से दिल्ली के मिल न ता-मक़्दूर 

कि हम फ़क़ीर हुए हैं इन्हीं की दौलत से 

-मीर तक़ी मीर


ऐ वाए इंक़लाब ज़माने के जौर से 

दिल्ली 'ज़फ़र' के हाथ से पल में निकल गई 


बहादुर शाह ज़फ़र


इन दिनों गरचे दकन में है बड़ी क़द्र-ए-सुख़न 

कौन जाए 'ज़ौक़' पर दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर 


शेख़ इब्राहीम ज़ौक़


जनाब-ए-'कैफ़' ये दिल्ली है 'मीर' ओ 'ग़ालिब' की 

यहाँ किसी की तरफ़-दारियाँ नहीं चलतीं 


कैफ़ भोपाली


दिल्ली छुटी थी पहले अब लखनऊ भी छोड़ें 

दो शहर थे ये अपने दोनों तबाह निकले 

मिर्ज़ा हादी रुस्वा


दिल्ली के न थे कूचे औराक़-ए-मुसव्वर थे 

जो शक्ल नज़र आई तस्वीर नज़र आई 

मीर तक़ी मीर


दिल्ली में अपना था जो कुछ अस्बाब रह गया 

इक दिल को ले के आए हैं उस सरज़मीं से हम 

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी


ऐ सबा मैं भी था आशुफ़्ता-सरों में यकता 

पूछना दिल्ली की गलियों से मिरा नाम कभी 

हसन नईम


क्यूँ मता-ए-दिल के लुट जाने का कोई ग़म करे 

शहर-ए-दिल्ली में तो ऐसे वाक़िए होते रहे 

ज़ुबैर रिज़वी



तज़्किरा देहली-ए-मरहूम का ऐ दोस्त न छेड़ 

न सुना जाएगा हम से ये फ़साना हरगिज़ 

अल्ताफ़ हुसैन हाली



दिल्ली हुई है वीराँ सूने खंडर पड़े हैं 

वीरान हैं मोहल्ले सुनसान घर पड़े हैं 

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी


मरसिए दिल के कई कह के दिए लोगों को 

शहर-ए-दिल्ली में है सब पास निशानी उस की 

मीर तक़ी मीर


दिल-रुबा तुझ सा जो दिल लेने में अय्यारी करे 

फिर कोई दिल्ली में क्या दिल की ख़बरदारी करे 

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी


लैला घर में सिलाई करने लगी 
क़ैस दिल्ली में काम करने लगा 
-फ़हमी बदायूनी

अर्ज़-ए-दकन में जान तो दिल्ली में दिल बनी 
और शहर-ए-लखनऊ में हिना बन गई ग़ज़ल 

गणेश बिहारी तर्ज़







Tuesday, August 20, 2024

फ़्लैश बैक - गंगू तेली

 गंगू तेली 


रामबाबू चाट वाले के बग़ल में ही थी 

गंगू तेली की दुकान 

बाज़ार सीताराम में 

किसी तिल्सिम-सी लगती मुझे 

उसकी दुकान पर रखी 

रंग - बिरंगें तेलों की बोतलें 

जिनसे उठती थी मिली - जुली सुगंध 

क़िस्म - क़िस्म के तेल 

परिचित नहीं था उस समय 

उन रंग - बिरंगे तेल के नामों से 

तिल, मूंगफली 

अरंडी , अलसी का तेल 

सूरजमुखी , चमेली ,

जैतून , तुलसी , चन्दन का तेल 

चमेली , गुलाब , बादाम का तेल 

और भी कितने ही क़िस्मों के तेल 

आज भी लगाता हूँ जब कभी कोई तेल 

तो याद आ जाती है 

गंगू तेली की दुकान। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस  

फ़्लैश बैक - गुल्ली डंडा

 गुल्ली डंडा 


गुल्ली डंडा था 

मेरा प्रिय खेल 

और मेरा सहपाठी 

रामगोपाल 

फुटबॉल की तरह मुँह

पकोड़े सी नाक 

नाटा क़द 

लेकिन इस खेल का उस्ताद ,

दिखने में लगता था वो बन्दर 

पर बनाता था 

चित्र अति सुन्दर ,

पुरानी दिल्ली के 

रामलीला ग्राउंड में 

कितनी ही बार खेला ये खेल ,

उस ज़माने में यही था 

ग़रीबों का खेल ,

लेकिन मैं

उतना ग़रीब भी नहीं था 

खेल सकता था 

दुसरे खेल भी लेकिन 

आता था बहुत लुत्फ़ 

खेलने में गुल्ली डंडा 

मुझे याद नहीं पड़ता 

जो मैं जीता हूँ कभी उसे से 

हमेशा , हमेशा पिदाता ही 

रहा वो मुझको।  


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


 


Monday, August 19, 2024

फ़्लैश बैक - रामबाबू चाट वाला

 रामबाबू  चाट वाला 


रामबाबू  चाट वाला था मशहूर 

बाज़ार सीताराम में 

कुछ तो जादू था 

उसकी चाट और नाम में 

लगी रहती थी भीड़ हर समय 

अक्सर लड़कियों का समूह 

गोल गप्पे का पानी 

होता था तीखा 

उसकी चाट के आगे 

लगता था सब कुछ फीका 

कभी कभी खाता था मैं भी 

चाट और गोल गप्पे उसके 

और जब नहीं खाता था 

बस गुज़रता भर था 

उसकी दुकान के सामने से 

आ ही जाता था मेरे मुँह में पानी।  


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


Friday, August 16, 2024

अजनबी दोस्त

अजनबी दोस्त 


 अभी मैं उस से मिला नहीं हूँ 

 न सुनी है उसकी आवाज़ 


 दिल है कि उठता ही जाता है 

तस्सवुर में उभरती  

एक धुंदली सी तस्वीर 

वो लम्बे क़द वाला 

मेरा मेहबूब कैसा होगा 

बादलों में छिपे चाँद के जैसा होगा 

उसकी भँवे   कमान सी होंगी 

आँखें उसकी बादाम सी होंगी 

सुर्ख रुख़्सार  गुलाबी होंगे

उसके   नैन  शराबी  होंगे

लब  उसके पैमाने होंगे 

जिनके सब दीवाने होंगे  

 ज़बान यक़ीनन  शीरीं होगी 

 आसमानी कोई परी होगी  

अभी मैं उस से मिला नहीं हूँ 

न सुनी है उस की आवाज़ 


किरणें जब उसको छूती होंगी 

ख़ुद पे वो इतराती होगी 

भीगी उसकी ज़ुल्फ़ें  काली  

बदरी भी शरमाती होगी 

उसकी बाहों के घेरे में

कौन नहीं घिर जाता होगा 

उसके बदन का संदल 

किसको नहीं सुहाता होगा 

उस   उद्दाम  नदी से मिलने 

समुन्दर भी अकुलाता होगा 

उसकी  पलकों को छू कर 

सूरज भी मुस्काता होगा 


वो  जिस्म रहता है जिस रूह में 

वो रूह भी रूहानी होगी 

कई सदियों की कहानी होगी 


अभी मैं उस से मिला नहीं हूँ 

न सुनी है उस की आवाज़ 


वो झिलमिल तारा अजनबी 

क्या  दोस्त था मेरा कभी ?


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 




Monday, August 12, 2024

Mátyás király és a tisztesség - राजा मात्याश ओर सफ़ाई

 राजा मात्याश  ओर सफ़ाई


राजा मात्याश की एक अजीब आदत थी। वह प्रतिदिन दोपहिया गाड़ी पर बैठकर सैर के लिए जाता था। उसकी गाडी को हमेशा कोई दूसरा व्यक्ति खींचता था। आखिरी बार, जब सभी ने राजा की गाडी खींच ली तो आखरी बार गाडी खींचने की बारी एक  गरीब आदमी की आ गयी । उसने राजा के लिए  प्रार्थना की:- ईश्वर , मेरे प्रतापी राजा , ज़िंदाबाद  ! - भगवान तुम्हें आशीर्वाद दे, बेटा। अच्छा, क्या तुम मुझे सैर कराने आये हो? - जी , मैं सैर कराने आया हूं! गरीब आदमी ने कहा. वह गाडी की ड्राइवर सीट पर  बैठ गया और जल्दी ही वे लोग  शहर से होकर जा रहे थे। आगे बढ़ते जाने पर  वह बार बार पीछे मुड़कर देखता रहा। इस पर  राजा मात्याश ने उसे   डांट लगाई । मात्याश ने उस से पूछा. -  बेटा, तुम  बार बार पीछे की ओर क्या देख रहे हो ? गरीब आदमी ने उत्तर दिया, "मैं पहियों को देख रहा हूँ।" - " और तुम उन्हें इतने ग़ौर  से क्यों देख रहे हो? " राजा ने फिर पूछा।  मैं देखता हूँ  कि यह पहिया कितनी दिलचस्प चीज़  है। यह आगे बढ़ता है, और तीलियाँ एक बार ऊपर और एक बार नीचे होती हैं। एक बार ऊपर और एक बार नीचे,  यह एक व्यक्ति के जीवन की तरह है. - तुमने ये क्यों कहा? राजा ने पूछा।   गरीब आदमी ने समझाया, "  इसीलिए, क्योंकि भाग्य के साथ भी ऐसा ही होता है।"

एक बार ऊपर और एक बार नीचे. अब महामहिम गाडी  के ऊपर बैठे हैं, और मुझे उसे खींचना है। यह मेरे लिए न्यायचित   नहीं है. -तो फिर क्या न्यायचित होगा तुम्हारे लिए ? - मेरे लिए  यह तब उचित होगा जब  वापसी के समय मैं  गाड़ी में बैठ जाऊं, और महामहिम आप   गाडी  खींचे     - गरीब आदमी ने उत्तर दिया।  इस पर राजा ज़ोर से हँसा।  मात्याश को   उस गरीब आदमी की बुद्धिमत्ता बहुत पसंद आई। उन्होंने  उससे कहा: - ठीक है, तुम गरीब आदमी हो! अपनी गरिमा बनाए रखें! गाडी  में बैठो, मैं तुम्हें अभी घर ले चलूँगा।

ग़रीब  ने बड़े गर्व से गाडी  की ओर देखा। लोग आश्चर्यचकित थे कि राजा गाड़ी खींच रहा था और गरीब आदमी सीट पर बैठा था। घर पर, मात्याश ने गरीब आदमी को बढ़िया  उपहार दिए, क्योंकि वह बुद्धिमान  लोगों को बहुत पसंद करता था।







Sunday, August 11, 2024

Me and My Rabindranath - मैं और मेरे रबीन्द्रनाथ - सुहिना बिश्वास मजूमदार

 मैं और मेरे रबीन्द्रनाथ -  सुहिना बिश्वास मजूमदार 



कौन बनाता है रबीन्द्रनाथ , रहस्य या मिथक ,

सूफ़ी ?


कौन बनाता है रबीन्द्रनाथ 

माँ सरस्वती की कृपा या 

उनकी अपनी समृद्ध विरासत ,

बपौती , शासक की ज़िम्मेदारी 

या 

प्रोमेथियस की आत्मा ?


परदे के पीछे , आकाश के नीचे 

क्षितिज के उस पार 

मैं समझना चाहती हूँ 

इस संसार की फुसफुसाहट को ,

भीड़ के संत्रास के दुःख को 

खिलती हुई ख़ुश्बू को 


काश मैं महसूस कर पाती 

काश मैं सीख पाती 

काश मैं बिजली की क्रूरता से 

प्रेम करती और भूल जाती 

भेष बदले दुश्मन के रहस्य को या 

इस अँधेरे संसार को युद्ध की ओर 

धकेलते किसी धन जुटाने वाले को 


किसी जादूगर की मानिंद 

मैं बढ़ सकती हूँ प्रेम करती हुई आगे 

आज ओर कल की अधूरी कहानियों को 

पीछे छोड़ते हुए 


अपने चमकीले सपनों में , मैं जुड़ सकती हूँ 

ज़िंदगी के बाहरी बहाव के साथ 

इंसानी अस्तित्व की जीत का 

कर सकती हूँ अनुभव उनके साथ। 



कवियत्री - सुहिना बिश्वास मजूमदार 


अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस 




Wednesday, August 7, 2024

फ़्लैश बैक - दादा जी

 दादा जी 


अपने दोनों हाथों में 

सब्ज़ी के भरे हुए थैले 

उठाए  हुए 

मीलों तक पैदल चलना 

ज़रा भी संकोच हुआ नहीं कभी 

मेरे विद्वान दादा जी को ,

मेहनत से कभी नहीं चुराया जी 

घर के बहुत से काम 

मसलन , गेहूँ धो कर सुखाना 

चारपाई को बान से बुनना   

निवाद का पलंग बुनना 

गोल मेज़ पर संस्कृत - अँग्रेज़ी के 

कोश पर कार्य करना 

किसी विद्यार्थी को संस्कृत पढ़ाना 

घर आए

अतिथियों का स्वागत  करना 

रोज़ वैदिक संध्या करना 

प्रातः काल संस्कृत श्लोकों का 

उच्चारण करना 

त्योहारों पर वैदिक हवन करना 

पुरोहित बन कितने ही जोड़ों का 

पाणिग्रहण संस्कार करवाना ,

रात में अक्सर 

उनकी पीठ और तलुओं को 

कंघे से खुजाता बड़े मन से 

लेकिन संस्कृत के पाठ 

दोहराता बे-मन  से  

शायद इसीलिए 

नहीं सीख पाया संस्कृत ,

आज सोचता हूँ एकांत में 

कितना मुश्किल होता है 

दादा जी होना। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


Tuesday, August 6, 2024

Mátyás király és a szegény tanító - राजा मात्याश और ग़रीब शिक्षक

 एक बार राजा मात्याश  एक गाँव में पहुंचा । उसने पूछा कि वह रात को कहाँ रुक सकता है। गाँव वालो ने उसे इधर से उधर भेजा ,गाँव वालों को उस ग़रीब  घुमक्कड़ में कुछ विशेष उपयोगी नज़र नहीं आया। सराय के  मालिक ने उससे कहा : - " शिक्षक के पास जाओ, वह निश्चित रूप से तुम्हें स्थान  देगा। मात्याश शिक्षक के पास गया और शिक्षक ने वास्तव में उसे अपने घर पर आमंत्रित किया। शिक्षक  बहुत ग़रीब  आदमी था, लेकिन उसने फिर भी यात्री को स्वादिष्ट भोजन दिया। उन्होंने दुनियादारी गपशप करी  और फिर आराम करने चले गए।  . अगली सुबह मात्याश अच्छी सलाह के लिए सराय के मालिक का शुक्रिया अदा करने  के लिए पब में वापस गया। लेकिन , वहाँ मात्याश  क्या देखते हैं? शिक्षक की जैकेट रैक पर लटकी हुई थी। - " यह जैकेट यहाँ कैसे आई ?  - मात्याश ने पूछा, - "मैंने इसे शाम को शिक्षक के यहाँ देखा था? " - हाँ, यह जैकेट उसी की है । उसने इसे पैसे  के एवज़ में यहां  छोड़ दिया, उसी पैसे से अतिथि का मनोरंजन किया  -    मालिक ने समझाया   . मात्याश शिक्षक की दयालुता से बहुत प्रभावित हुआ। उसने उसे बढ़िया  इनाम देने का फैसला किया।मात्याश वापिस बुदा  में अपने  घर लौट गया और एक दिन उसने  शिक्षक को बुलवाया ।बेचारा शिक्षक यह समझ नहीं पा रहा था  कि उसने कौन सी गलती की होगी जो उसे सीधे राजा के पास बुलाया गया है। मात्याश  ने शिक्षक के  सम्मान में एक शानदार दावत का आयोजन किया ।  विदाई के वक़्त  मात्याश ने उसे  उपहार भी दिए । उसने उसे अपना वस्त्र दिए , जिसकी जेबों में उसने खूब पैसे भरे। अन्य दरबारियों  ने भी ऐसा ही किया। शिक्षक को छह घोड़ों वाली गाड़ी में उनके गांव तक घर ले जाया गया। इस प्रकार राजा मात्याश ने उसके दयालु आतिथ्य के लिए उसे पुरस्कृत किया। 



Flash Back _ English _ Ramlila Fair

 Ramlila Fair


In the old Delhi's  

Ramlila Ground,  

The Ramlila fair used to bring  

Thousands of joys.  

In the evening with friends,  

We would head to the fair,  

Hundreds of stalls selling snacks,  

Enticing games full of fun,  

Like the Well of Death,  

Shooting targets,  

Ring toss, laughter filled golgappas,  

Clown posters outside,  

Inside Munni Bai’s dance,  

Paper or plastic  

Swords, maces, and bows and arrows,  

And the crowd together  

Made the fair a fair.  

From afar, the sight of the Ramlila stage,  

Big swings,  

At night, everything  

Shone in colorful lights.  

Every face glowed with happiness.  

After roaming the fair  

For two or three hours,  

When returning home,  

There would be a bow and arrow in hand,  

Or sometimes a mace or sword.  

In life, many Ravanas met,  

But never could wield  

The bow and arrow, mace or sword,  

Because never learned the weapon's art  

From any teacher, ever.

Mátyás király és a cseh vitéz - राजा मात्याश और चेख योद्धा

 राजा मात्याश के काल में  एक महान दुर्जेय चेख  योद्धा रहता था। वह इस बात के लिए मशहूर था  कि उसे  कोई हरा नहीं सकता था. अन्त में देश में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं बचा जो उससे लड़ने का साहस कर सके। राजा मात्याश ने घोषणा की कि जो कोई भी चेख योद्धा के खिलाफ खड़े होने का साहस करेगा उसे आवेदन करना चाहिए। राजा ने  विजेता को बड़ा इनाम देने का वादा किया, लेकिन किसी ने भी निमंत्रण का जवाब नहीं दिया। राजा को क्या करना चाहिए? राजा  अब बुदा के विशाल महल में उस चेख  योद्धा को फलते - फूलते हुए देखना सहन नहीं कर सकता था। राजा ने सोचा  कि उस चेख चैंपियन के खिलाफ वह स्वयं खड़ा होगा। बेशक भेष बदल कर ! समस्या यह थी कि द्वंद्व केवल तभी वैध था जब राजा भी उपस्थित हो। मात्याश  ने  किसी तरह से यह ऐलान करा दिया कि  राजा कि अनुपस्थिति में भी  लड़ाई जारी रख सकते हैं। जब युद्ध का दिन आया, तो राजा मात्याश ने कवच पहन लिया। उन्होंने अपने सिर पर बख्तरबंद हेलमेट और हाथों में बख्तरबंद दस्ताने पहने और मैदान में उतर गए । लड़ाई शुरू हो गई . भीमकाय   चेख ने शेर की तरह दहाड़ते हुए अपने प्रतिद्वंद्वी पर बेतहाशा हमला किया, लेकिन मात्याश ने हार नहीं मानी। भीड़ ने अज्ञात हंगेरियन बहादुर को उत्साहपूर्वक प्रोत्साहित किया: - मारो, काटो! तुम्हारे पिता नहीं! चलो, हंगेरियन! बढ़ों , हंगेरियन! - वे चिल्लाए, जिससे पूरा  बुदा महल  गूंज उठा। अंत में,मात्याश  ने चेख बहादुर को ह लोगों और सरदारों ने मांग करी  कि वह अपना हेलमेट उतारकर अपना चेहरा दिखाए! मात्याश ने अपने बख्तरबंद हेलमेट की ग्रिल खोली, उन्हें देख कर  हर कोई दंग रह गया। लोग खुशी से झूम उठे: - राजा मात्याश अमर रहें! - ज़िंदाबाद।। ज़िंदाबाद ! के नारों से  बुदा क़िले  की दीवारें गूँज उठीं।


Sunday, August 4, 2024

Maghai Paan - English _ Flash Back

 Maghai Paan


What Days Were Those

What Evenings Were Those

When I And My Friend Rakesh Mittal

(Who Passed Away On 01.01.1979

In A Road Accident)

Together Used To Eat

120 Number

Maghai Paan

With The Betel Leaf In Our Mouths On Winter Evenings

We Used To Roam

On The Roads For A Long Time

In Gandhi Nagar

Ghaziabad

There Was Revati Paan Seller's Shop

Often We Used To Eat Paan On Credit

And

In Return For Reciting Poems Or

Presenting Our Favorite Program 'Manbhavan'

On Delhi Radio Station

When We Received

A Cheque Of 75 Rupees

We Paid Off The Paan Seller's Debt

In Those Days

There Was A Different Pleasure In Vagabonding

That Was A Beautiful Phase Of My Life

For Many Years In My Life

I Continued Eating Betel Paan

But

The Aroma Of Those Credit

Maghai Paans

Is Still Fresh

In My Mouth Today.

Saturday, August 3, 2024

फ़्लैश बैक - गाजर की काँजी

 गाजर की काँजी 


सर्दियों में बनाती थी मेरी नानी 

गाजर की काँजी 

शीशे के मर्तबान में ,

उस पारदर्शी मर्तबान में 

काँजी का लाल रंग 

दिल को बहुत लुभाता 

छत पर सर्दियों  की धुप में बैठ 

काँजी पीने का लुत्फ़ उठाता 

जीवन में बहुत  से पेय पदार्थ पिए

 लेकिन उस काँजी का स्वाद  

ज़बान पर आज भी है ताज़ा .


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 




Friday, August 2, 2024

Mátyás király és a három rest - राजा मात्याश और तीन आलसी

 राजा मात्याश और तीन आलसी 


राजा मात्याश के दरबार में तीन आलसी  रहते थे। वे इतने आलसी थे कि अभावग्रस्त लोग उन्हें भोजन भी देते थे। एक बार, राजा मात्याश ने उन राक्षसों को उनके महान आलस्य के लिए डांटा, और उनके ऊपर घर की छत में आग लगा दी। उनमें से एक बोला:- " घर में आग लग गयी है " . तो दूसरे ने कहा ," राजा तुम्हें इससे बाहर निकालेगा " । तीसरा बोला:-तुम लोग पहले  इतनी बातें नहीं करते थे? और बाद में  वे तीनों घर में ही जल गये।



Mátyás király és a börtönőr - राजा मात्याश और जेलर

 राजा मात्याश और जेलर


एक बार वे एक ग़रीब  किसान को जेल में डालना चाहते थे। तभी राजा मात्याश भेष बदलकर घूम रहे  थे । उन्हें   ग़रीब  किसान के  रोते हुए बच्चों, उसकी बीमार बीवी पर दया आ गयी और उसके स्थान पर  वह  ख़ुद जेल चले  गए । थोड़ी देर बाद मात्याश को प्यास लगी और उन्होंने जेलर से पानी मांगा । जेलर  एक मतलबी आदमी था, उसने हंसते हुए जवाब दिया:- मैं तुम्हें पानी क्यों दूं? तुम एक दुखी भिखारी हो, मुझे तुमसे कुछ नहीं मिलेगा । हाँ , अगर तुम  अमीर होते और मेरी सेवाओं के लिए मुझे एक या दो स्वर्ण मुद्राएं देते, तो मैं इसके बारे में एक मिनट भी नहीं सोचता।मात्याश ने न्यायाधीशों को अपनी पहचान बताई। जब वह मुक्त हुआ, तो उसने जेलर  को अमीर और ग़रीब  के बीच इस तरह से अंतर करना सिखाया  कि वह अपने जीवन में कभी न भूल पाए   ।



Mátyás király és a beteg kisbéres - राजा मात्याश और बीमार दिहाड़ीदार

 राजा मात्याश और बीमार दिहाड़ीदार


राजा मात्याश अपने  छात्र जीवन से ही  देश का बहुत दौरा किया करते थे और लोगों के जीवन को समझते थे । ऐसे ही एक अवसर परघुमते हुए उन्होंने  एक धनी किसान को अकेले हल जोतते देखा। राजा मात्याश उससे  ने पूछा: - उस्ताद  , क्या कारण है कि आप अकेले हल जोट रहे हैं ? आपके पास कोई मददगार  नहीं है? - पूछो ही मत, शिष्य जी! यदि मेरा दिहाड़ी मज़दूर  इतना बीमार न होता तो मैं अकेले हल नहीं जोतता। बेचारा  तीसरे दिन भी ठण्ड के मारे  बच्चे की तरह काँप रहा है। क्या आप उसके  बदले मेरी मदद करेंगें ? मैं अच्छी दिहाड़ी  दूंगा।   मात्याश ने इसके बारे में अधिक नहीं सोचा और दिहाड़ी मज़दूर की जगह  काम करना शुरू कर दिया। उसने शाम तक किसान की मदद की। उन्होंने भोजन किया और  अमीर किसान ने उसकी  मज़दूरी चुकाई। तब  मात्याश ने वो  पैसे बीमार दिहाड़ी मजदूर को दे दिये। - इसे रहने दो , तुम्हें इसकी मुझसे ज़्यादा ज़रूरत है। बीमार मज़दूर  ने छात्र को उसकी दयालुता के लिए धन्यवाद दिया।

राजा मात्याश ने कमरे की दीवार पर पत्थर से  लिखा: "मैं हुन्याद का बच्चा हूं, मेरे लिए तलवार वही होगी जो तुम्हारे लिए हल है।" यह लिख कर वह रात को चुपचाप निकल गया। 


Thursday, August 1, 2024

Mátyás király a szegény ember temetésén - राजा मात्याश और ग़रीब आदमी का दफ़न

 राजा  मात्याश और ग़रीब आदमी का दफ़न 


एक बार राजा मात्याश   ने अपने महल की खिड़की से बाहर देखा। उसने ग़ौर से देखा तो पाया   कि किसी ग़रीब  व्यक्ति को एक अव्यवस्थित लकड़ी के ताबूत में दफ़नाया  जा रहा था। शोक मनाने वालों की कोई भीड़  उसके पीछे नहीं थी । न रिश्तेदार, न दोस्त. केवल चार सेवक , पुजारी और मुंशी । बेचारा ग़रीब आदमी! उसके अंतिम संस्कार में भी कोई नहीं आया - राजा बुदबुदाया। उनकी अंतिम यात्रा में भी कोई उनके साथ नहीं जाता। राजा ने  खुद को संभाला, अपना मुकुट अपने सिर पर रखा , और अपनी शाही पोशाक पहन ली । उसने झट से अपनी पत्नी से कहा:- जल्दी से तैयार हो जाओ मैडम, और मेरे साथ चलो। रानी ने तुरंत अपना मुकुट और शाही पोशाक  पहनी और जल्दी से उन लोगों के पीछे चल पड़ी। उन्होंने मातम मनाते लोगों  को  पकड़ लिया और जुलूस में शामिल हो गये। जैसे-जैसे वे आगे बढ़े, लोगों को उन पर आश्चर्य हुआ: - अरे ! लगता है  किसी बहुत बड़े व्यक्ति को दफना रहे हैं. यहाँ तक कि राजा भी आये  है  - उन्होंने कहा, और अधिक से अधिक लोग जुलूस में शामिल हो गये। वहाँ इतनी भीड़ हो गयी  कि वे मुश्किल से कब्रिस्तान में समा पा रहे थे। - अब ठीक  है! राजा मात्याश ने रानी से कहा। - कम से कम हमने उस ग़रीब  आदमी को गरिमामय अंतिम संस्कार तो दिया।


अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस