अभी अभी बैंगलोर के 'साहित्य साधक मंच' के व्ट्सप पटल के ज़रीये पता चला कि जनाब देशपति 'देश ' २४ जून २०२० को इस दुनिया, जिसे कुछ लोग सराये-फ़ानी भी कहते हैं , से गुज़र गए। टेक्नोलॉजी
के इस दौर में यह भी कितनी बड़ी
विडंबना है कि किसी कवि की
मृत्यु की सूचना हमे उनके
देहांत के एक महीने बाद मिल
रही है। उनका नाम भी हमारे देश के उन हज़ारों गुमनाम कवियों / शाइरों की फ़ेहरिस्त में शामिल हो गया जिन्हें ५०-१०० साहित्यिक विभूतिओं से अधिक कोई नहीं जानता।
लगभग ६ फुट लम्बा क़द , साँवला रंग और अच्छी क़द -काठी वाले उस शख़्स की मुस्कुराहट आज भी तस्सवुर में क़ैद है।आप 'साहित्य साधक मंच' की महाना गोष्ठियों में नियमित रूप से शिरकत फरमाते थे।उर्दू लबों -लहज़े में गीत या ग़ज़ल पुरज़ोर मीठे तरन्नुम में सुनाते और दिल खोल कर अच्छे क़लाम की तारीफ़ भी करते थे। अक्सर नशिस्त वाले दिन वो मुझे फ़ोन करते और मैं उनको जे डी मारया के बस स्टॉप से ले लेता और वापसी में वही पर छोड़ देता था। उन्हें कुछ अरसे पहले कैंसर हो गया था लेकिन कैंसर से उन्होंने अपनी जंग जीत ली थी। उनका साहित्यिक जज़्बा क़ाबिले तारीफ़ है क्योकि कैंसर को हरा कर उन्होंने फिर से नशिस्तों में आना शुरू कर दिया था।
आप एक सच्चे कवि थे क्यों कि आप के पास एक कवि हृदय भी था और आपको कविता की समझ भी थी। उन्होंने अपनी ज़िंदगी का एक लम्बा अरसा मुंबई में गुज़ारा जहां वो मशीनों का काम करते थे।
उनसे बावस्ता साहित्यिक मित्र उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहें हैं और सभी इस दुःख से पीड़ित भी हैं लेकिन सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब उनका अप्रकाशित क़लाम इस दुनिया तक पहुँच जाएगा। मेरी जानकारी में उनका क़लाम अभी तक प्राकिशत नहीं हुआ है।
मित्रों , अदबीयात्रा शीघ्र ही इस दिशा में क़दम उठाने जा रही है। अदबीयात्रा का प्रयास रहेगा कि उन साहित्यकारों की अप्रकाशित पुस्तकों का प्रकाशन करे जो किन्ही विशेष कारणों से उनके जीवन काल में प्रकाशित नहीं हो पाई।
इस दुःख भरी घड़ी में जनाब सर्वेश चंदौसवी का शे'र देखें -
राज़े- हस्ती है 'सर्वेश ' क्या
तीन हर्फ़ी ' अजल ' आदमी
* श्रीमती भावना शुक्ला से यह जानकारी मिली कि देशपति 'देश ' का वास्तविक नाम देशपति नीखरा है और आप जबलपुर के रहने वाले थे।
लगभग ६ फुट लम्बा क़द , साँवला रंग और अच्छी क़द -काठी वाले उस शख़्स की मुस्कुराहट आज भी तस्सवुर में क़ैद है।आप 'साहित्य साधक मंच' की महाना गोष्ठियों में नियमित रूप से शिरकत फरमाते थे।उर्दू लबों -लहज़े में गीत या ग़ज़ल पुरज़ोर मीठे तरन्नुम में सुनाते और दिल खोल कर अच्छे क़लाम की तारीफ़ भी करते थे। अक्सर नशिस्त वाले दिन वो मुझे फ़ोन करते और मैं उनको जे डी मारया के बस स्टॉप से ले लेता और वापसी में वही पर छोड़ देता था। उन्हें कुछ अरसे पहले कैंसर हो गया था लेकिन कैंसर से उन्होंने अपनी जंग जीत ली थी। उनका साहित्यिक जज़्बा क़ाबिले तारीफ़ है क्योकि कैंसर को हरा कर उन्होंने फिर से नशिस्तों में आना शुरू कर दिया था।
आप एक सच्चे कवि थे क्यों कि आप के पास एक कवि हृदय भी था और आपको कविता की समझ भी थी। उन्होंने अपनी ज़िंदगी का एक लम्बा अरसा मुंबई में गुज़ारा जहां वो मशीनों का काम करते थे।
उनसे बावस्ता साहित्यिक मित्र उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहें हैं और सभी इस दुःख से पीड़ित भी हैं लेकिन सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब उनका अप्रकाशित क़लाम इस दुनिया तक पहुँच जाएगा। मेरी जानकारी में उनका क़लाम अभी तक प्राकिशत नहीं हुआ है।
मित्रों , अदबीयात्रा शीघ्र ही इस दिशा में क़दम उठाने जा रही है। अदबीयात्रा का प्रयास रहेगा कि उन साहित्यकारों की अप्रकाशित पुस्तकों का प्रकाशन करे जो किन्ही विशेष कारणों से उनके जीवन काल में प्रकाशित नहीं हो पाई।
इस दुःख भरी घड़ी में जनाब सर्वेश चंदौसवी का शे'र देखें -
राज़े- हस्ती है 'सर्वेश ' क्या
तीन हर्फ़ी ' अजल ' आदमी
* श्रीमती भावना शुक्ला से यह जानकारी मिली कि देशपति 'देश ' का वास्तविक नाम देशपति नीखरा है और आप जबलपुर के रहने वाले थे।
I salute your effrontery bring unknown poets to light 💐🙏
ReplyDeleteOm shanti. Sadgati prapt ho.
ReplyDeleteदेश पति देश को विनम्र श्रद्धांजलि । ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे ।
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