सैर-ए-गुलफरोशां
सैर-ए-गुलफरोशां या'नी फूल वालों की सैर , दिल्ली में हर साल मनाए जाने वाला एक ऐसा सांस्कृतिक पर्व है जो हिन्दू -मुस्लिम एकता की एक अतुलनीय मिसाल है। चाँदनी चौक से ३२ किलोमीटर का सफ़र तय करती सैर ए गुलफरोशां मेहरौली में स्थित सूफ़ी संत हज़रत क़ुतुब्बुदीन 'काकी ' और देवी योगमाया के मंदिर तक पहुँचती है। इससे सम्बंधित दूसरी जानकारियां तो आप गूगल पर पढ़ सकते है लेकिन इससे सम्बंधित एक नज़्म देखे -
सैर-ए-गुलफरोशां
ख़ल्कुल्लाह क्यों ख़रोशा है
आज क्या सैर-ए-गुलफरोशां है
बहेलिओं यक्कों का इक ताँता है
जिसको देखो वो क़ुतुब जाता है
भाई जग्गू के सर पर दुकान
जा के मेहरौली में बेचेगा पान
मियां गुफ़ूर भी इस मेले पर
लाएं है सारा कुनबा ठेले पर
पा पियादों के देखिये बूते
लिए हुए हैं बग़ल में जूते
अब आया कस्बे का मीना बाज़ार
सजी सजाई दुकानों की क़तार
हरेक दूकान में भरा हैं माल
मिठाईओं के चुन रहे हैं थाल
नाशपाती ,अनार और अमरूद
कही कढ़ाई में चढ़ा हैं दूध
बेचता हैं कोई बुढ़िया के बाल
सेव बेसन के और चने की दाल
कबाब-ए-सीख भून रहें हैं कहीं
लोग क़व्वाली सुन रहें हैं कहीं
नाच गाने हरेक मकान में हैं
इत्र के फोये सब के कान में हैं
बाम पर है नवाब मोटे-से
नै पकड़ ली उन्होंने कोठे से
आये बाज़ार में गिरधारी लाल
तोंद इतनी हैं कि दुशवार सँभाल
रईस है ये हाल है पल्ले
ख़रीदते हैं अंगूठी छल्ले
हंसी मज़ाक का अजब है तौर
चल रहा है शराब-ए-नाब का दौर
बोतल इकऔर आने वाली है
नवाब पुतली गाने वाली है।
सैर-ए-गुलफरोशां या'नी फूल वालों की सैर , दिल्ली में हर साल मनाए जाने वाला एक ऐसा सांस्कृतिक पर्व है जो हिन्दू -मुस्लिम एकता की एक अतुलनीय मिसाल है। चाँदनी चौक से ३२ किलोमीटर का सफ़र तय करती सैर ए गुलफरोशां मेहरौली में स्थित सूफ़ी संत हज़रत क़ुतुब्बुदीन 'काकी ' और देवी योगमाया के मंदिर तक पहुँचती है। इससे सम्बंधित दूसरी जानकारियां तो आप गूगल पर पढ़ सकते है लेकिन इससे सम्बंधित एक नज़्म देखे -
सैर-ए-गुलफरोशां
ख़ल्कुल्लाह क्यों ख़रोशा है
आज क्या सैर-ए-गुलफरोशां है
बहेलिओं यक्कों का इक ताँता है
जिसको देखो वो क़ुतुब जाता है
भाई जग्गू के सर पर दुकान
जा के मेहरौली में बेचेगा पान
मियां गुफ़ूर भी इस मेले पर
लाएं है सारा कुनबा ठेले पर
पा पियादों के देखिये बूते
लिए हुए हैं बग़ल में जूते
अब आया कस्बे का मीना बाज़ार
सजी सजाई दुकानों की क़तार
हरेक दूकान में भरा हैं माल
मिठाईओं के चुन रहे हैं थाल
नाशपाती ,अनार और अमरूद
कही कढ़ाई में चढ़ा हैं दूध
बेचता हैं कोई बुढ़िया के बाल
सेव बेसन के और चने की दाल
कबाब-ए-सीख भून रहें हैं कहीं
लोग क़व्वाली सुन रहें हैं कहीं
नाच गाने हरेक मकान में हैं
इत्र के फोये सब के कान में हैं
बाम पर है नवाब मोटे-से
नै पकड़ ली उन्होंने कोठे से
आये बाज़ार में गिरधारी लाल
तोंद इतनी हैं कि दुशवार सँभाल
रईस है ये हाल है पल्ले
ख़रीदते हैं अंगूठी छल्ले
हंसी मज़ाक का अजब है तौर
चल रहा है शराब-ए-नाब का दौर
बोतल इकऔर आने वाली है
नवाब पुतली गाने वाली है।
NOTE : इस नज़्म के ख़ालिक़ का नाम अभी ढूंड नहीं पाया हूँ ,अगर बता पाए तो ख़ुशी होगी।
नाम मिल जाने पर दर्ज़ कर दूँगा।
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