Wednesday, July 29, 2020

पुष्कर - आवाज़ का जादूगर

पुष्कर ,जी हाँ  यही नाम था मेरे उस दोस्त का जो आवाज़ का जादूगर था। मैंने अपनी ज़िंदगी के कुछ साल ग़ाज़ियाबाद  में गुज़ारे और वही मेरी दोस्ती पुष्कर से हो गयी थी जोकि मेरे घर के करीब ही रहता था।  शामे अक्सर उसके साथ गुज़रने लगी। मैंने उसी के  मुहँ से उर्दू के कई मशहूर शाइरों का क़लाम पहली बार सुना। उसके साथ रहने का एक और सुख था और वह यह कि अगर कोई  आधा घंटा  उसके साथ गुज़ार ले  तो बदन में आधा किलो ख़ून का बढ़ जाना तय था क्योंकि वह बहुत दिलचस्प लतीफ़े सुनाता था।

लगभग पांच फुट का क़द ,दुबला-पतला बदन , काला रंग , बिखरे बाल , ज़र्द होंठों पर जमी पान की पपड़ी और ज़र्द आँखे लेकिन आवाज़ का जादूगर यह बंगाली  मोशाय कभी न केवल आकाशवाणी अपितु अनेक विशाल सांस्कृतिक कार्येक्रमों में एक  प्रतिष्ठित उद्घोषक के रूप में कार्य कर चुका था। ग़ाज़ियाबाद के व्यवसायिक विज्ञापनों  में भी उसकी आवाज़ ग़ाज़ियाबाद की गलियों में गूंजती रहती।

उन दिनों म्यूजिकल नाइट्स का ज़माना था। जिस म्यूजिकल नाईट में पुष्कर उद्घोषक होता उसकी सफलता निश्चित होती। पुष्कर के कुछ शुभचिंतकों  ने  " पुष्कर नाईट " का आयोजन किया। यह आयोजन  शहर के पुराने बस अड्डे के नज़दीक 'उर्वशी' सिनेमा हॉल में किया गया था।  इस  सिनेमाहॉल की खासियत यह थी कि इसमें दो बालकोनियाँ थी। नाईट वाले दिन नज़ारा यह था कि जितने लोग सिनेमा हॉल के भीतर थे उससे दुगने लोग सिनेमा हॉल के बाहर  और उस भीड़ को काबू में करने के लिए घोड़े वाली पुलिस बुलवाई गयी थी।  इसी से पुष्कर की लोकप्रियता का आप अंदाज़ा लगा सकते है।


 उसके बाद से  ही मैं दिल्ली में रहने लगा था लेकिन ग़ाज़ियाबाद आना -जाना लगा रहता था। अगली बार ग़ाज़ियाबाद गया तो पता चला कि पुष्कर अब गाँधी नगर के उस मकान में नहीं रहता। उसके माँ -बाप के गुज़रने के बाद मकान मालिक ने उसे घर से निकाल दिया था और कुछ अरसे के लिए उसने भोंदूमल की धर्मशाला  को अपना ठिकाना बना लिया था।मैं उससे मिलने उस धर्मशाला में गया।  एक टूटी फूटी अटेची का सिरहाना  और एक फटा हुआ कम्बल।देख कर काफी दुःख हुआ और उसकी कुछ मदद भी कर दी।दिल्ली में रहने के कारण उससे मुलाकातों का सिलसिला कम हो गया था लेकिन पुष्कर जब भी दिल्ली आता मुझे मिले बगैर नहीं जाता। 

धीरे धीरे उसकी शराब पीने की लत बढ़ती गयी , वह ज़्यादा से ज़्यादा शराब पीने लगा और शराब उसे पीने लगी।उसकी आवाज़ का सूरज अब ढलने लगा था।   एक दिन अचानक ग़ाज़ियाबाद से  मेरे चाचा जी ने मुझे फ़ोन कर के बताया कि पुष्कर का देहांत हो गया।आवाज़ का जादूगर ख़ला में विलीन हो गया था।  कुछ पलों के लिए यह धरती ठहर गयी थी लेकिन फिर घूमने लगी थी अपनी धुरी पर।
मेरे ज़हन में जनाब    राजगोपाल सिंह 'समर ' बिजनौरी का यह शे'र कौंध गया -

चढ़ते सूरज को   लोग जल देंगे 
जब ढ़लेगा तो मुड़  के चल देंगे

5 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर, इंदु कान्त जी।पुष्कर बेहद आवाज का जादूगर था।एक जमाना था, जब म्यूजिकल नाइट्स की शोहरत, पुष्कर की एंकरिंग से होती थी।मगर उसका अंत बड़ा दर्दनाक था।प्रभु उसे अपनी शरण में ले।

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  2. बहुत बढ़िया नमन संगीत के जादूगर पुष्कर जी।

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  3. इंदु कान्त जी पुष्कर जी के विषय में जानकर लगा कि मानें समां ठहर सा गया है... इतने बड़े कलाकार का अंत ऐसा.. क्यों-????
    यह प्रश्न बार-बार मन में उठता है..

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  4. Kalakar ya to bahut amir hota hai ya bahut garib. Is pesa me risk bahut bahut hi jyada hota hai. Sarkar ko ek helpline number, platform and organization shuru karna chahiye, kalakaron ke liye.

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  5. बहुत सुन्दर

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