आज सारी दुनिया कोरोना महामारी से पीड़ित है। इस की वज्ह से लगभग सभी को जान -माल का नुक्सान हो रहा है , विशेष रूप से दुनिया भर के मज़दूर सब से अधिक पीड़ित हैं। दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है , करोड़ों लोग अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे हैं। पीड़ितों की मदद के लिए भारतीय सरकार ने कुछ योजनाएं आरम्भ करी। इन योजनाओं के चलते बैंकों से कर्ज़ आसानी से मिल जायेगा लेकिन ब्याज का क्या होगा ?
कुछ निजी सेक्टर्स इसका ख़ूब लाभ उठा रहे हैं , उन्होंने अपनी ब्याज दरें पहले से अधिक बढ़ा दी है लेकिन या तो सरकार को इस की जानकारी नहीं है या फिर इन पर सरकार को कोई नियंत्रण नहीं है। गोदान को होरी भी ब्याज देते देते इस दुनिया से कूच कर गया था। ८४ वर्षों से होरी ब्याज दे रहा है लेकिन आज तक उसका कर्ज़ नहीं उतरा और ब्याज की दरें बढ़ती गयी। कुछ धर्मों में तो ब्याज लेना व देना हराम बताया गया है लेकिन रोटी खानी है तो ब्याज देना ही पड़ता है। साहूकार मूल छोड़ सकता है पर ब्याज नहीं लेकिन क्या अच्छा होता अगर दुनिया भर के साहूकार इस शे'र को समझ लेते -
ये रेट ब्याज का तो , दुनिया से भी महत्तर
फिर क्यों हराम लेता ७० के जो ७२ (बहत्तर ) ?
NOTE :उपरोक्त शे'र के रचियता का नाम अभी ढूंड रहा हूँ। अगर आप बता सके तो ख़ुशी होगी। नाम मिलते ही दर्ज़ कर दूंगा।
कुछ निजी सेक्टर्स इसका ख़ूब लाभ उठा रहे हैं , उन्होंने अपनी ब्याज दरें पहले से अधिक बढ़ा दी है लेकिन या तो सरकार को इस की जानकारी नहीं है या फिर इन पर सरकार को कोई नियंत्रण नहीं है। गोदान को होरी भी ब्याज देते देते इस दुनिया से कूच कर गया था। ८४ वर्षों से होरी ब्याज दे रहा है लेकिन आज तक उसका कर्ज़ नहीं उतरा और ब्याज की दरें बढ़ती गयी। कुछ धर्मों में तो ब्याज लेना व देना हराम बताया गया है लेकिन रोटी खानी है तो ब्याज देना ही पड़ता है। साहूकार मूल छोड़ सकता है पर ब्याज नहीं लेकिन क्या अच्छा होता अगर दुनिया भर के साहूकार इस शे'र को समझ लेते -
ये रेट ब्याज का तो , दुनिया से भी महत्तर
फिर क्यों हराम लेता ७० के जो ७२ (बहत्तर ) ?
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