इदरीस मोहम्मद तैयब , जी हाँ यही नाम है शख़्सियत का जिनसे लगभग १५ साल पहले मेरी मुलाकात INSA की उस गोष्ठी में हुई थी जिसमे आप अपनी अरबी कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद सुना रहे थे। मैंने उनकी चंद कविताओं का अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद कर दिया। मेरा द्वारा अनुदित उन कविताओं को पढ़कर उन्होंने मुझसे कहा कि मैं अंगेज़ी अनुवाद की गयी पुस्तक का पूरा अनुवाद हिन्दी में कर दूँ। आदेशानुसार मैंने उनकी कविताओं का हिन्दी अनुवाद आरम्भ कर दिया।
उन दिनों आप दिल्ली में लीबिया के दूतावास में कार्यरत थे। अनुवाद के सिलसिले में, अक्सर उनके दफ़्तर में ही उनसे मिलता था। इदरीस साहब सिगरेट के शौक़ीन थे और मुझे सिगरेट नापसंद थी ,लेकिन मेरी उपस्थिति में वो सिगरेट कम पीते थे। एक मोटी छड़ी का इस्तेमाल करते थे क्यूंकि उनकी टांगों में कुछ तकलीफ थी , लकड़ी के बूट दोनों पैरों में पहनते थे। इन्ही मुलाकातों के बीच मालूम पड़ा कि इनको कर्नल गद्दाफ़ी के ज़माने में लगभग १० सालो तक जेल में क़ैदी के रूप में रहना पड़ा,उनकी कुछ कवितायेँ जेल जीवन से प्रेरित हैं।
ख़ैर हिन्दी अनुवाद का कार्य पूर्ण हुआ और हिन्दी अनुवाद की किताब " घर का पता " प्रकाशित हो गयी। इसी ख़ुशी में उन्होंने अपने घर एक दावत रखी और मुझे भी आमंत्रित किया। मुझे उन्होंने कुछ जल्दी बुलवा लिया था। डिफेन्स कॉलोनी में एक कोठी की तीसरी मंज़िल पर रहते थे। जब उनके घर पर मैंने उस दिन उनके खुले पोलियोग्रस्त दोनों पावँ देखे तो मुझे बड़ा अचरच हुआ। मैंने उनसे पूछा - जब आपको यह तकलीफ है तो आप तीसरी मंज़िल पर क्यों रहते है ?
-" मैं दर्द को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहता " - उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे जवाब दिया।
इदरीस साहब को अनाथों से बहुत लगाव था। मैंने उनसे कभी पूछा तो नहीं पर ऐसा लगता था कि या तो वो जन्म से अनाथ है या फिर उनके माता पिता की मृत्यु हो चुकी है। उनके आदेश से ही "आर्य अनाथालय " दरियागंज ,दिल्ली में एक बाल कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमे अनाथ बच्चों ने अपनी कवितायेँ सुनाई। इदरीस साहब के आदेश पर उन कविताओं को एकत्रित किया गया और उन्हें सम्पादित कर " नन्हे मुन्नों की बड़ी चिंताएं " नाम से किताब प्रकाशित की गयी। इदरीस साहब ने प्रकाशक को यह हिदायत दी कि " घर का पता " और " नन्हे मुन्नों की बड़ी चिंताएं " पुस्तकों की बिक्री से जो भी रॉयल्टी प्राप्त हो ,वह रक़म आर्य अनाथालय को दे दी जाये।
उन्होंने एक संस्था " पोएट्री सोसाइटी ऑफ़ ऑर्फ़न चिल्ड्रन " भी खोली जो बाद में चल कर बंद हो गयी। इदरीस साहब तो भारत छोड़ कर चले गए लेकिन उनका क़लाम और मुहब्बत आज भी दिल्ली की गलियों में ज़िंदा है।
प्रस्तुत है " घर का पता " पुस्तक से एक छोटी -सी कविता का हिन्दी अनुवाद :
ज़िंदा ज़ख़्म
गायक गाता है गीत
सब गाते हैं गीत
लेकिन मैं जो
सबसे अधिक आतुर हूँ
गाने को एक गीत
अपने ही
ज़िंदा ज़ख़्म पर सोता हूँ
अपनी ही आवाज़ को
ओढ़ाता हूँ सन्नाटा।
कवि - इदरीस मोहम्मद तैयब
अनुवाद - इन्दुकांत आंगिरस
उन दिनों आप दिल्ली में लीबिया के दूतावास में कार्यरत थे। अनुवाद के सिलसिले में, अक्सर उनके दफ़्तर में ही उनसे मिलता था। इदरीस साहब सिगरेट के शौक़ीन थे और मुझे सिगरेट नापसंद थी ,लेकिन मेरी उपस्थिति में वो सिगरेट कम पीते थे। एक मोटी छड़ी का इस्तेमाल करते थे क्यूंकि उनकी टांगों में कुछ तकलीफ थी , लकड़ी के बूट दोनों पैरों में पहनते थे। इन्ही मुलाकातों के बीच मालूम पड़ा कि इनको कर्नल गद्दाफ़ी के ज़माने में लगभग १० सालो तक जेल में क़ैदी के रूप में रहना पड़ा,उनकी कुछ कवितायेँ जेल जीवन से प्रेरित हैं।
ख़ैर हिन्दी अनुवाद का कार्य पूर्ण हुआ और हिन्दी अनुवाद की किताब " घर का पता " प्रकाशित हो गयी। इसी ख़ुशी में उन्होंने अपने घर एक दावत रखी और मुझे भी आमंत्रित किया। मुझे उन्होंने कुछ जल्दी बुलवा लिया था। डिफेन्स कॉलोनी में एक कोठी की तीसरी मंज़िल पर रहते थे। जब उनके घर पर मैंने उस दिन उनके खुले पोलियोग्रस्त दोनों पावँ देखे तो मुझे बड़ा अचरच हुआ। मैंने उनसे पूछा - जब आपको यह तकलीफ है तो आप तीसरी मंज़िल पर क्यों रहते है ?
-" मैं दर्द को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहता " - उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे जवाब दिया।
इदरीस साहब को अनाथों से बहुत लगाव था। मैंने उनसे कभी पूछा तो नहीं पर ऐसा लगता था कि या तो वो जन्म से अनाथ है या फिर उनके माता पिता की मृत्यु हो चुकी है। उनके आदेश से ही "आर्य अनाथालय " दरियागंज ,दिल्ली में एक बाल कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमे अनाथ बच्चों ने अपनी कवितायेँ सुनाई। इदरीस साहब के आदेश पर उन कविताओं को एकत्रित किया गया और उन्हें सम्पादित कर " नन्हे मुन्नों की बड़ी चिंताएं " नाम से किताब प्रकाशित की गयी। इदरीस साहब ने प्रकाशक को यह हिदायत दी कि " घर का पता " और " नन्हे मुन्नों की बड़ी चिंताएं " पुस्तकों की बिक्री से जो भी रॉयल्टी प्राप्त हो ,वह रक़म आर्य अनाथालय को दे दी जाये।
उन्होंने एक संस्था " पोएट्री सोसाइटी ऑफ़ ऑर्फ़न चिल्ड्रन " भी खोली जो बाद में चल कर बंद हो गयी। इदरीस साहब तो भारत छोड़ कर चले गए लेकिन उनका क़लाम और मुहब्बत आज भी दिल्ली की गलियों में ज़िंदा है।
प्रस्तुत है " घर का पता " पुस्तक से एक छोटी -सी कविता का हिन्दी अनुवाद :
ज़िंदा ज़ख़्म
गायक गाता है गीत
सब गाते हैं गीत
लेकिन मैं जो
सबसे अधिक आतुर हूँ
गाने को एक गीत
अपने ही
ज़िंदा ज़ख़्म पर सोता हूँ
अपनी ही आवाज़ को
ओढ़ाता हूँ सन्नाटा।
कवि - इदरीस मोहम्मद तैयब
अनुवाद - इन्दुकांत आंगिरस
I don't know about Poet Irdis Mohammad Tayyab but from your narration I presume he was a pure soul and noble human being.
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