Tuesday, July 21, 2020

अदबीयात्रा का नामकरण

प्रिय मित्रों ,

ब्लॉग की दुनिया में  आज मेरा पहला क़दम है। इस ब्लॉग का नामकरण करने में मुझे काफी कठिनाई हुई।  आख़िरकार मैंने इसका नामकरण कर दिया -  'अदबीयात्रा '।  इस संयुक्त शब्द में उर्दू भाषा का शब्द 'अदब ' और हिंदी भाषा का शब्द " यात्रा " का सम्मिश्रण है ,जिसने इस नाम को अधिक सुन्दर बना दिया है।  वास्तव में साहित्य किसी भी भाषा का हो वह साहित्य  ही होता है। वैसे भी हिंदी और उर्दू तो गंगा जमुनी बहनों के समान है। हक़ीक़त तो यह है की दोनों भाषाओँ के बहुत से शब्द एक दूसरे में हवा और पानी की तरह घुल मिल गए हैं। किसी भी भाषा या संस्कृति के लिए यह ज़रूरी है कि उनका आपस में आदान-प्रदान होता रहे। जिस भाषा या संस्कृति का आदान प्रदान नहीं होता वह देर-सबेर मर जाती है। इस ब्लॉग का नाम ' अदबीयात्रा ' ज़रूर है लेकिन यह विश्व की सभी भाषाओँ और संस्कृतिओं  का स्वागत करती है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि इस अदबी यात्रा में आप सभी मेरे साथ शामिल होंगे और अपने विचारों से मुझे अवगत कराते रहेंगे। इस अवसर पर मुझे जनाब सीमाब  सुल्तानपुरी का एक शे'र याद आ रहा है -

            मैं इक  चिराग़ लाख चिराग़ों में बँट गया 
            रक्खा जो आईनों ने कभी  दरम्यां   मुझे 

2 comments:

  1. आपका लेखन आज की परिस्थितियों में बहुत प्रासंगिक है। आपको अदबीयात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं। आशा है कि आपके लेख इसी तरह साहित्य के चिरागों को प्रज्यवलित करते रहेंगे ।

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  2. बहुत सुंदर इंदुकांत जी आपके इस ब्लॉग के लिए हमारी शुभकामनाएं। अब आपकी कविताओं से सभी लाभान्वित हो सकेंगे।
    शुभम भवतु।

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