बापू के बन्दर
हम बुरा देख भी रहे हैं
हम बुरा सुन भी रहे हैं
हम बुरा कह भी रहे हैं
हम बापू के बन्दर नहीं हैं
जो हमारे बाहर है , वो हमारे अंदर नहीं है
जब मदारी ही न रहा तो
बंदरों को तो भूलना ही था खेल
कल नुमाइश में लगी थी
बापू के बंदरों की सेल
' आइए बाबू साहब , आइए
ले जाइए
दो रूपये के तीन , दो रूपये के तीन
साहिब बोले झाड़ते हुए जीन
' क्यों बे लूटता है ?
नुक्कड़ वाला दुकानदार तो
एक रूपये के तीन दे रहा है
साथ में बापू फ्री दे रहा है ',
दुकानदार ने बिगड़ा - सा मुँह बनाया
साहिब से फ़रमाया
' लाइए , एक ही रुपया लाइए
बोहनी तो करवाइए। '
साहिब ने पर्स खोला
अकड़ कर बोला
' हूँ , अब आई न अक़्ल ठिकाने
हमें ही चले थे बहकाने
ठीक है , तीन बन्दर पैक कर दे ',
' लीजिए हज़ूर चेक कर लें '
बंदरों को देखते ही साहिब चकरा गए
बिन हाथों के बन्दर देख के घबरा गए
' ऐ मियाँ ,
कौन ख़रीदेगा तेरे ये बन्दर
इनके तो हाथ ही नहीं हैं
इनमे पहले सी कोई बात ही नहीं है
मुझे नहीं चाहिए ये बन्दर बिन हाथों के
मुझे नहीं चाहिए ये जीवन बिन साँसों के '
दुकानदार ने ग्राहक को तोला , समझते हुए बोला
' हज़ूर हाथों पे न जाइये
बन्दर असली हैं , ले जाइये
' कि हाथ जो कर रहे हैं चीरहरण द्रौपदी का
हाथ जो घोंट रहे हैं ग़रीबों का गला
हाथ जो काट रहे हैं दूसरों के हाथ
हाथ जो मिटा रहे हैं अपनी ही ज़ात
हाथ जो घोल रहे है ज़हर हर तरफ
उन सब हाथों को रख कर एक तरफ
अपने हाथों से बनाये हैं ये बन्दर बिन हाथों के
और लेने हो तो ले जाइये श्रीमान
वरना यहाँ तो
बापू की गुडविल पर बिकता है सामान '
दुकानदार की डाँट से साहिब सकपकाया
धीरे से बुदबुदाया
' अरे भाई , ले तो जाऊँ
पर इनके हाथ कहाँ हैं ?
इनके आँख , कान , मुँह सब खुले पड़े हैं
आख़िर इनके हाथ कहाँ हैं ?
दुकानदार यूँ तो अंगूठाछाप था
पर बेचने का हुनर उसके पास था
आख़िर आप करोगे क्या हाथों का ?
दुकानदार ने झल्ला कर कहा
' हाथ , हाथ , हाथ !
बुरा मत देखो , बुरा मत बोलो , बुरा मत सुनो
क्या देखे फिर ?
क्या सुने फिर ?
बुरे के अलावा
कही कुछ है देखने - सुनने को
और फिर आदमी जो देखेगा
जो सुनेगा , वही तो बोलेगा
मैंने इसीलिए इन बंदरों के
आँख , मुँह ,कान खुले छोड़ रखे हैं
ताकि जब कभी भी
इस धरा पर सतयुग आये
तो रौशनी की किरणें
इन बंदरों की खुली आँखों में समै जाएँ
आत्मा का संगीत
घोल जाये अमृत इनके कानों में
और इनके मुँह से बह निकलें अमर प्रेम के पवित्र झरने
साहिब ने अपनी आँखों पर पड़ा
काला चश्मा हटाया
कानों से रुई के ज़हरीले फोये निकाले
और फिर धीरे से कहा ,
' ऐ भाई , मुझे वो बंदरों वाली कहानी
एक बार और सुनाओ '
हम बुरा देख भी रहे हैं
हम बुरा सुन भी रहे हैं
हम बुरा कह भी रहे हैं
हम बापू ही के तो बन्दर हैं।
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