एक और युद्ध
घर की चारदीवारी में
घुटती बीवी की आकांक्षाएँ
बच्चों की टूटी स्लेटें
और दफ़्तर में साहब की ख़ुशामद
जब छोड़ जाती है दिल पर
एक कसैली कड़वाहट
व्यवस्था की एक एक शाख़
फूँक डालने का आक्रोश
जब रात में
टूटी चारपाई पर
बेतरतीबी से सोये बच्चे की
मीठी मुस्कराहट के साथ
बह जाता है ,
तो मैं एक बार फिर से
शान्ति की प्रतिमा बन
साधना करने लगता हूँ
अंदर छिपे ईमानदार इंसान की ,
पर अब और नहीं सहा जाता
यह बात मुझे
पहले भी कई बार बताई गयी थी -
अधिकार मांगने से नहीं मिलते
इस युग में
विस्फोट की भाषा
समझना ज़रूरी है
और मेरे अंदर का सिपाही
तैनात हो जाता है
एक और युद्ध के लिए।
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