दर्द के समुन्दर में पीड़ा की धार है
आँसू की कश्ती में जाना उस पार है
कोई तूफ़ान नहीं है , राह आसान नहीं है
काँटों की पलकों में , आँसू छिपाती है
सीने में अपने ही ग़म को सजाती है
शाख़ अनजान नहीं है , राह आसान नहीं है
क्षण भर का हँसना है , बरसों का रोना है
जाने किन हाथो का , मानव खिलौना है
एक पहचान नहीं है , राह आसान नहीं है
महलों की छत पे वो ,जी भर बरसते हैं
निर्धन के खेत पर , सूखे तरसते हैं
मेघ नादान नहीं हैं , राह आसान नहीं हैं।
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