एक और कविता
एक और कविता
एक और गीत
एक और ग़ज़ल
किसके लिए ?
अख़बार में बासी ख़बर के लिए ?
लपटों में घिरे शहर के लिए ?
सीमा पर तैनात सिपाही के लिए ?
राह में भटके हुए राही के लिए ?
कुछ परिचित , कुछ अपनों के लिए ?
कुछ यादों कुछ सपनों के लिए ?
कुछ गिनी -चुनी तालियों के लिए ?
कुछ ख़ास चुनी गालियों के लिए ?
या सिर्फ इसलिए कि चंद पैसे आएँगे
और हम
कुछ दिन और पान खाएँगे ?
अभी रचने ही होंगे मुझे छंद कई
ऐसा तो कोई अनुबंध नहीं
फिट क्या लाचारी है
क्यूँ क़लम मुझ पर भारी है ?
एक और कविता , एक और गीत , एक और ग़ज़ल
मैं नित रच जाता हूँ
और शाम के मुसाफ़िर सा थक जाता हूँ
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